History

सास बहू मंदिर का इतिहास

सास बहू मंदिर का इतिहास, मंदिर का सास बहू नाम क्यों पड़ा, सास बहू मंदिर की विशेषता, सास बहू मंदिर पर आक्रमण

सास बहू मंदिर का इतिहास 

सास बहू मंदिर ग्वालियर नागदा में स्थित है सास बहू के इस मंदिर की धार्मिक मान्यता दूर-दूर तक है ग्वालियर का सास बहू का मंदिर देखने में जितना भव्य है इस मंदिर की कहानी भी उतनी ही अद्भुत है इस मंदिर के बनाने की कहानी 1902ईस्वी के आसपास शुरू हुई थी देखने में यह मंदिर इतना शानदार है कि इस मंदिर को देखना स्वर्ग में देवी देवताओं के दर्शन करने जैसा है लेकिन इस मंदिर का नाम यहां आने वाले लोगों और इस मंदिर के बारे में सुनने वाले लोगों के लिए हमेशा चर्चा का विषय रहा

इस मंदिर के निर्माण और इसके नाम की कहानी बहुत ही रोचक है 11वीं शताब्दी के दौरान ग्वालियर के ऊपर कछवंश के राजा महिपाल का राज था इनकी पत्नी भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भगत थी भगवान विष्णु में इतना अटूट विश्वास और रानी की भक्ति को देखते हुए राजा ने भगवान विष्णु का यह मंदिर बनवाया उस समय इस मंदिर का नाम सहस्त्रबाहु रखा गया | सास बहू मंदिर का इतिहास |

मंदिर का सास बहू नाम क्यों पड़ा 

कुछ समय बाद राजा महिपाल के पुत्र का विवाह हुआ और पुत्रवधू भगवान शिव की भगत थी पुत्र वधू की भगवान शिव के प्रति आराधना देखकर रानी ने पास में ही भगवान शिव का मंदिर बनवा दिया तब इन दोनों मंदिरों को संयुक्त रूप से सहस्त्रबाहु कहा जाने लगा हजार भुजाओं वाले भगवान विष्णु के कारण इस मंदिर का नाम सहस्त्रबाहु रखा गया था और बाद में इस मंदिर का नाम सास बहू कर दिया गया क्योंकि रानी सास थी और पुत्रवधू बहू इसलिए इस मंदिर का नाम भी सास बहू रख दिया गया | सास बहू मंदिर का इतिहास |

सास बहू मंदिर की विशेषता

 यह मंदिर 32 मीटर लंबा और 22 मीटर चौड़ा है इस वक्त मंदिर में प्रवेश करने के लिए तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार है जबकि चौथी दिशा का प्रवेश द्वार इस वक्त बंद है इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि इस मंदिर में तीन और मंडप है जबकि चौथी तरफ गर्भगृह है और अब यह स्थान खाली है इस मंदिर की दीवार पर की गई नक्काशी और मूर्तिकला कमाल की है

यह मंदिर  मूर्ति कला का  एक सुंदर नमूना पेश करता है मंदिर के खंभों और छत पर भी शानदार कलाकृति की गई है जिन्हें देखकर लोग इस मंदिर को बहुत पसंद करते हैं बहू का मंदिर सास मंदिर से थोड़ा छोटा है इसमें एक अष्टकोणईय छत है इसमें आठ स्त्री प्रतिमाएं बनी हुई है दोनों मंदिरों में एक- एक विधि सभा मंडप, गर्भ ग्रह और शिखर बने हुए हैं सास मंदिर के भीतर भगवान ब्रह्मा, शिव और विष्णु की प्रतिमा एक मंच पर खुद ही हुई है और दूसरे मंच पर राम, बलराम और परशुराम की प्रतिमाएं है सास मंदिर के सामने एक मेहराब बनी हुई है

मंदिर की दीवारों को रामायण के प्रसंगों से सजाया गया है तथा मूर्तियों को दो चरणों में इस तरह से व्यवस्थित किया गया है कि वे एक दूसरे को घेरे रहती हैं दोनों मंदिरों की दीवारों को शिवकला की उत्कृष्ट कलाओं से सजाया गया है और यह अद्भुत कलाकृति यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती है जिस ग्वालियर शहर में यह मंदिर है उस शहर का इतिहास भी बहुत शानदार है और इस मंदिर की छत पर चलकर इस ऐतिहासिक शहर को देखना अपने आप में एक कमाल का अनुभव होता है लोग शानदार अनुभव को लेने के लिए इस मंदिर में आते हैं | सास बहू मंदिर का इतिहास |

सास बहू मंदिर पर आक्रमण 

 कई मंदिरों की तरह इस मंदिर पर भी मुस्लिम शासकों ने कई बार आक्रमण किया और इसे नष्ट करने का प्रयास किया मुस्लिम शासकों ने इस मंदिर को बहुत ही नुकसान पहुंचाया और अब इस मंदिर का खंडहर ही लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है आज इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है लेकिन मंदिर की मान्यता और उसकी नक्काशी को देखते हुए साल पर यहां पर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है 15 वीं शताब्दी में महाराणा कुंभा ने फिर से इन मंदिरों की मरम्मत करवाई थी राजस्थान में सास बहू मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसमें महाभारत की कथा को मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया गया है | सास बहू मंदिर का इतिहास |

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