History

पागल बाबा मंदिर का इतिहास

पागल बाबा मंदिर का इतिहास, पागल बाबा मंदिर की विशेषता, पागल बाबा की कहानी

पागल बाबा मंदिर का इतिहास

यह मंदिर वृंदावन की सबसे अद्भुत मंदिरों में से एक है 221 फीट ऊंचा 9 मंजिलों वाला यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है इस मंदिर का निर्माण 1969 में हुआ था और इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 1981 में हुई थी जहां मां काली के परम उपासक संत श्री लीला नंद ठाकुर जी रहा करते थे वे मां काली की भक्ति में इतने लीन हो गए कि उन्हें पागल बाबा कहा जाने लगा

तभी से राधा कृष्ण जी के इस मंदिर को पागल बाबा का मंदिर कहा जाता है कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है लोग अपनी मनोकामनाओं को मंदिर की दीवारों पर लिख जाते हैं मंदिर के अंदर का शायद ही कोई कोना बचा होगा जहां कोई मनोकामना नहीं लिखी हो, मंदिर की हर एक दीवार और खंभों पर मनोकामनाएं लिखी हुई दिखाई दे जाएंगे मंदिर के एक तरफ पागल बाबा की समाधि बनी हुई है यही बाबा ने अपना शरीर छोड़ा था | पागल बाबा मंदिर का इतिहास |

पागल बाबा मंदिर की विशेषता

मंदिर में प्रवेश करते ही मां भगवती का मंदिर बना हुआ है  मंदिर के ठीक सामने कुंड बना हुआ है जिसे सुदेवी कुंड कहा जाता है बाबा की पत्नी का नाम सुदेवी था इसी कुंड के बगल में शिव परिवार का मंदिर स्थापित है इस मंदिर को ध्यान से देखने पर सभी धर्मों की धार्मिक इमारतों की झलक इस मंदिर में दिखाई देती है 9 मंजिलों वाले इस मंदिर की हर एक मंजिल पर एक मंदिर है मंदिर की प्रथम मंजिल जिसमें श्री राधा कृष्ण जी का सुंदर मंदिर स्थापित है | पागल बाबा मंदिर का इतिहास |

पागल बाबा की कहानी 

श्री बांके बिहारी का एक गरीब ब्राम्हण बहुत बड़ा भक्त था एक बार उसने एक सेठ से कुछ रूपए उधार लिए थे अपने ठाकुर जी का मंदिर बनाने के लिए और हर महीने उसे थोड़ा-थोड़ा कर चुकता करता रहता था जब आखिरी किस्त रह गई तब सेठ के मन में लालच आ गया और उसने ब्राम्हण को अदालती नोटिस भेज दिया कि अभी तक तुमने उधार चुकता नहीं किया है इसलिए पूरी रकम ब्याज सहित वापस करें इसके बाद वह ब्राह्मण बहुत परेशान हो गया था

इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुंच गया जज के सामने भी ब्राह्मण ने बहुत ही सफाई दी परंतु जज ने कहा कि कोई गवाह है जो यह साबित कर सके कि तुमने सेठ जी को सारा पैसा चुका दिया है इस पर ब्राह्मण ने कहा कि इसका गवाह तो केवल बांके बिहारी है वह सब जानते हैं यह कहकर वह ब्राह्मण एक कागज का टुकड़ा लेकर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के नीचे रख देता है और उनसे कहता है कि अब अदालत में गवाही देने के लिए आपको आना होगा और जब दूसरे दिन वह ब्राह्मण कोर्ट में पहुंचता है तो सच में उस समय एक बूढ़ा व्यक्ति वहां आता है और वह सेठ के खिलाफ गवाही देता है

जब उस ब्राह्मण ने उस सेठ को पैसे दिए थे वह सब तिथि और दिन बता देता है उस ब्राह्मण ने उस सेठ को जब जब पैसे दिए वह उन सब के बारे में बता देता है वह कहता है कि जब ब्राह्मण सेठ जी को पैसे देता था तो मैं उसके साथ होता था जब जज ने सेट का खाता देखा तो उस बूढ़े व्यक्ति की गवाही सच निकली और उसने नाम फर्जी डाल रखा था इसके बाद उस जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दे दिया इसके बाद जब उस सेठ और जज ने उस ब्राह्मण से उस बूढ़े व्यक्ति के बारे में पूछा कि वह कौन थे

तब उस ब्राह्मण ने कहा साहब यही तो मेरे ठाकुर है जो भक्त की  दुविधा को देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया इतना सुनने के बाद जज साहब ब्राम्हण के चरणों में लेट गए और बांके बिहारी का पता पूछा इस सवाल के जवाब में ब्राह्मण ने यही कहा मेरा ठाकुर तो हर जगह है इसके बाद वह जज अपना घर बार और सारा काम धंधा सब कुछ छोड़कर ठाकुर को ढूंढने के लिए निकल गया और फकीर बन गया जब वह बहुत साल बाद वृंदावन लौटकर आया तो लोग उसे पागल बाबा के नाम से जानने लगे 

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