History

असीरगढ़ किले का इतिहास

असीरगढ़ किले का इतिहास, असीरगढ़ किले का निर्माण, असीरगढ़ किले पर आक्रमण, असीरगढ़ किले की विशेषता, असीरगढ़ किले की खुदाई 

असीरगढ़ किले का इतिहास 

अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शास्त्र विद्या में निपुण बनाया था महाभारत की युद्ध के दौरान गुरु द्रोण ने राज्य के प्रति निष्ठा होने के कारण कोरवो का साथ देना उचित समझा अश्वत्थामा भी अपने पिता की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे पिता पुत्र की जोड़ी ने महाभारत युद्ध के समय पांडवों की सेना को तबाह कर दिया था कहा जाता है कि अश्वत्थामा पिछले 5000 साल से असीरगढ़ किला में रोज अमावस्या की रात शिवजी की पूजा करने आते हैं | असीरगढ़ किले का इतिहास |

असीरगढ़ किले का निर्माण 

असीरगढ़ किला भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बुरहानपुर जिले में असीरगढ़ गांव में स्थित है असीरगढ़ किला बुरहानपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 250 फीट की ऊंचाई पर स्थित है इसका निर्माण आशा अहीर नामक एक व्यक्ति ने 14वी शताब्दी में करवाया था माना जाता है कि जहां इस समय असीरगढ़ किला है वह कभी आशा अहीर नाम का व्यक्ति रहने आया था जिसके पास हजारों पशु थे उस व्यक्ति ने पशुओं की सुरक्षा के लिए एक मिट्टी चुना पत्थरों से दीवार बनाई थी

अहीर के नाम पर असीरगढ़ किले का नाम पड़ा था अकबर के बाद यह किला 1760- 1809 ईस्वी तक मराठों के अधिकार में रहा इसके बाद 1904 ईस्वी में यहां अंग्रेजी सेना निवास करती थी असीरगढ़ का किला कुछ समय तक चौहान वंश के आधिपत्य में भी रहा था असीरगढ़ की प्रसिद्धि दूर तक फैलने के कारण फिरोजशाह तुगलक के एक सिपाही मलिक खान के पुत्र नसीर खान फारूकी को बहुत प्रभावित हुआ इसके बाद उसने आशा अहीर से भेंट करने का निवेदन किया

सने कहा कि आप मेरे परिवार को इस सुरक्षित स्थान पर रहने की अनुमति दें पूर्ण निश्चित षड्यंत्र के आधार पर उसने अपनी परेशानियों के झूठे कारण भी पेश किए थे आशा अहीर एक उदारवादी व्यक्ति था उसने नसीर खान को रहने की अनुमति दे दी थी इसके बाद नसीर खान ने पहले कुछ बच्चों और महिलाओं को डोलियों में भिजवाया और कुछ सिपाहियों को भी उनके साथ भेजा

जब आशा अहीर और उसके पुत्र उनके स्वागत के लिए आए तब उन्होंने डोलियों से निकलकर उनकी हत्या कर दी थी इसके बाद नसीर खान का इस किले पर अधिकार हो गया था नसीर खान की मृत्यु के बाद असीरगढ़ का किला बहादुर शाह के अधिकार में आ गया था लेकिन उसने किले की सुरक्षा को लेकर कोई दूसरा कदम नहीं उठाया था | असीरगढ़ किले का इतिहास |

असीरगढ़ किले पर आक्रमण 

वहीं दूसरी ओर अकबर असीरगढ़ किले पर कब्जा करने के लिए तैयार बैठा था अकबर ने असीरगढ़ पर आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया था किले के सारे दरवाजे बंद कर दिए गए थे अकबर द्वारा किले पर कब्जा करने की बात सुनकर बहादुर शाह ने किले की सुरक्षा बढ़ा दी और किले में 10 साल तक खाने की वस्तुओं का भी इंतजाम कर लिया था

ऐसे में अकबर को 6 महीनों तक किले के बाहर ही खड़ा रहना पड़ा किले की दीवार इतनी मजबूत थी कि किसी भी हमले से वह नहीं गिरी जब अकबर द्वारा किए गए हमलों से कुछ भी नहीं हुआ तो उसने कूटनीति अपनाई और बहादुर शाह जफर को आश्वासन दिलाया कि वह उससे शांति से बात करना चाहता है अकबर द्वारा किए गए इसके बाद उसने बहादुर शाह को वार्तालाप के लिए बुलाया और उसकी धोखे से हत्या कर दी थी

इसके बाद 17 जनवरी सन 1601 ईसवी को अकबर ने असीरगढ़ किले पर पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया था अकबर के बाद यह किला सन 1760- 1809 ईस्वी तक मराठों के अधिकार में रहा मराठों के पतन के बाद यह किला अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया सन 1904 ईस्वी में यहां अंग्रेजी सेना निवास करती थी | असीरगढ़ किले का इतिहास |

असीरगढ़ किले की विशेषता

असीरगढ़ का किला तीन भागों में बटा हुआ है ऊपर के हिस्से को असीरगढ़, मध्य भाग को कमरगढ़ और नीचे के भाग को मलयगढ़ कहा जाता है असीरगढ़ किले के मुख्य दो प्रवेश द्वार है एक उत्तर दिशा में और एक पूर्व दिशा में है किले के दरवाजे के सामने अकबर, दनियाल, औरंगजेब और शाहजहां के चार शिलालेख फारसी भाषा में स्थापित है शाहजहां शिलालेख से यह पता चलता है कि उनके कार्यकाल में कुछ किलो का निर्माण करवाया गया था

सन 1617 में शाहजहां को शाहजहां की उपाधि प्रदान कर बुरहानपुर का सूबेदार नियुक्त किया गया किंतु सन 1622 में जब शाहजहां को बुरहानपुर के स्थान पर कंधार का सूबेदार नियुक्त किया गया तो उसने जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था मुगल सेना ने उसे आगरा से खदेड़ कर असीरगढ़ भेज दिया जहां से वह गोपाल दास गोंड को किला सौंपकर दक्कन की ओर भागा था किंतु मुगल सेना ने उसे पुनः हरा दिया

लंबे संघर्ष के बाद 1626 में हुई संधि में उसे अपने दो बेटों दारा शिकोह और औरंगजेब के साथ असीरगढ़ का किला और 10लाख रुपए मुगल शासन को देना पड़ा किंतु 1627 में जहांगीर की मृत्यु होते ही परिस्थितियां शाहजहां के अनुकूल हो गई और वह 1628 में मुगल का सम्राट बन गया शाहजहां शिलालेख के पास जो दरवाजा है उसे राज गोपाल दास ने बनवाया था जो कि इस किले का सूबेदार था इस किले की दीवारों पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर तोपे स्थापित की गई थी जो इस किले की जामा मस्जिद है जामा मस्जिद की लंबाई 935 फुट और चौड़ाई 40 फीट है

इस किले के पूर्वी भाग में एक प्राचीन मंदिर है यह मंदिर महाभारत कालीन अश्वत्थामा का पूजा स्थल बताया जाता है असीरगढ़ का किला स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है यहां पर हिंदू मुस्लिम संस्कृति के अवशेष मिलते हैं असीरगढ़ किले में देखने लायक प्राचीन शिव मंदिर है जिसमें नंदी की मूर्ति स्थापित है इसमें एक जामा मस्जिद और रानी का महल, पानी की बेड़ियां और तमाम भवन मौजूद है

असीरगढ़ का किला तमाम शासकों के लिए संघर्ष का केंद्र रहा है इस किले में एक जलाशय हैं जिसका पानी कभी नहीं सूखता लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण के श्राप का शिकार अश्वत्थामा यहां स्नान करने के बाद पास में स्थित शिव मंदिर में पूजा करने के लिए आते हैं इस किले में गंगा, यमुना नाम के दो अलग-अलग जल स्त्रोत भी हैं | असीरगढ़ किले का इतिहास |

असीरगढ़ किले की खुदाई 

असीरगढ़ किले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां खुदाई करने से कई अन्य इमारतें मिली है खुदाई में एक बड़ी जेल भी मिली इसमें बड़ी बड़ी खिड़कियां दरवाजे मिले हैं इसमें चार बैरक बनवाए गए हैं इसके अलावा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में और भी कई स्मारक मिले हैं

खुदाई में एक रानी महल भी मिला है इस रानी महल में 20 कमरे भी मौजूद है यह रानी महल ईटों की जुड़ाई से निर्माण किया गया है  रानी महल 20 फीट की गहराई तक है यह किला रहस्य से भरा हुआ है | असीरगढ़ किले का इतिहास |

Back to top button