History

बप्पा रावल का इतिहास

बप्पा रावल का इतिहास 

बप्पा रावल का जन्म

बप्पा रावल का जन्म 713 ईस्वी को मेवाड़ में हुआ था बप्पा रावल गोहिल वंश के संस्थापक थे  बप्पा रावल का बचपन का नाम कालभोज था 716 ईस्वी में मेवाड़ के दक्षिण भारत में स्थित ईडर नामक राज्य पर नागादित्य नामक राजा का शासक हुआ करता था नागादित्य के  बुरे व्यवहार के कारण भीलों ने उनकी हत्या कर दी थी उनकी रानी जो चित्तौड़ के मौर्य शासक मानो मोरी की बहन थी वह अपने पति के साथ सती हो जाती है परंतु उसने अपनी 3 वर्षीय पुत्र कालभोज की रक्षा करने तथा पालन-पोषण की जिम्मेदारी एक विधवा ब्राह्मणी तारा को दे देती है

तारा उस 3 वर्षीय बालक की रक्षा के लिए भांडेर के किले में आश्रय लेती है तारा बहुत ही बुद्धिमान स्त्री थी वहां पर  भील बालकों के बीच उनका बचपन बीता जैसे-जैसे बप्पा रावल बड़े होने लगे तो भील बच्चों के बीच में एक गोरे बच्चे को देखकर भील उन पर नागदित्य के पुत्र होने का शक करने लगे इसके बाद विधवा ब्राह्मणी बप्पा रावल को लेकर नागदा पहुंचती है वहां एक ब्राह्मण परिवार  शरण लेती है वहां पर बप्पा रावल ब्राह्मण बालकों के साथ गाय चराने के लिए जाया करते थे बप्पा रावल का इतिहास 

बप्पा रावल के साथ चमत्कार

एक बार बप्पा रावल के साथ एक चमत्कारी घटना होती है जिन गायों को वह चराने के लिए जाया करते थे उन गायों में से श्यामा नाम की एक गाय ने अचानक दूध देना बंद कर दिया ब्राह्मण परिवार को लगा कि कालभोज इस गाय का दूध पी जाता है अपने ऊपर लगे हुए आरोप को गलत सिद्ध करने के लिए कालभोज ने श्यामा गाय पर नजर रखनी शुरू कर दी 1 दिन श्यामा गाय चरते हुए जंगल में पहुंच जाती है

कालभोज भी उसका पीछा करते हुए जंगल में पहुंच जाता है वहां पर श्यामा गाय एक गुफा में प्रवेश कर जाती है इसके बाद जैसे ही कल भोज ने उस गुफा में प्रवेश किया तो पहले से ही एक दिव्य सन्यासी ने उनका मुस्कुराते हुए स्वागत किया और कहा कि आ गए तुम भोज मैं बरसों से बैठा तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहा था जो श्यामा गाय थी वह हारित ऋषि के आराध्य शिवलिंग पर अपना दूध अभिषेक कर जाया करती थी जब इस घटना के बारे में काल भोज ने ब्राह्मण परिवार को बताया तो उन्होंने सोचा कि यह तो एक साधारण सा बालक है इस पर  ऋषि हारित की कृपया कैसे हो सकती है इसके बाद उन्होंने  को गाय कालभोज चराने के लिए नहीं जाने दिया 

बप्पा रावल की अपने मामा जी से मुलाकात 

एक दिन विधवा ब्राह्मणी तारा को  सांप ने काट लिया था  उस समय वह अपनी मृत्यु के बहुत अधिक नजदीक थी इसलिए उस ने कालभोज को सच बताने का निर्णय किया और उसने कालभोज  को उसकी वास्तविकता से अवगत करवाया और कहा कि तुम अपने मामा जी के पास चित्तौड़ चले जाओ इसके बाद बप्पा रावल चित्तौड़ आ गए और अपना परिचय चित्तौड़ के राजा को दिया बप्पा रावल की बात को सुनकर चित्तौड़ के राजा बहुत अधिक खुश हुए यह जानकर कि उनका भांजा जीवित है और उन्होंने अपने सेना में बप्पा रावल को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया | बप्पा रावल का इतिहास 

बप्पा रावल का मुस्लिमों के साथ युद्ध 

जब मुस्लिमों ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तो कालभोज अपनी सेना के साथ मुस्लिमों पर भूखे शेर की तरह  टूट पड़ा उनकी वीरता को देखकर उनके मामा जी मान मोरी ने दांतो तले उंगली दबा ली इसके बाद वह अपनी विजय का डंका बजाते हुए जैसलमेर, जोधपुर और सौराष्ट्र के राजाओं को एकजुट करते हुए गजनी जा पहुंचा उस समय यह सभी राजवंश मोहम्मद काशिफ से हार चुके थे बप्पा रावल ने 735 ईसवी में भगवान शिव का मंदिर बनवाया था जब भारत देश के राज्यों पर अरब देश के राजाओं द्वारा आक्रमण करवाए जाते थे तो उस आक्रमणकारियों से पूरा भारत दुखी हो चुका था उस वक्त 738 ईसवी में शासक राजा मोहम्मद कासिम को बुरी तरह से हराया था 

बप्पा रावल का विवाह

काल भोज गजनी के शासक सलीम को हराकर उनकी बेटी से विवाह कर लिया बप्पा रावल के लगभग 100 पत्नियां थी उसमें बप्पा रावल कि 35 मुस्लिम शासक राजाओं की राजकुमारी  थी  बप्पा रावल का इतना बैठा कि मुस्लिम शासकों ने अपनी बेटियां उनके वैसे उन्हें विवाह करवाई थीऔर वह वापस मेवाड़ की ओर लौट आए कलभोज ने भी धन दौलत लूटी थी वह वापस आकर गरीब लोगों में बांट दी इस प्रकार का दान आज तक किसी भी राजा ने नहीं किया  था उस समय काल भोज की प्रसिद्धि सातवें आसमान पर थी और इसी समय पर जाने अपने पालनहार भोज का पिता तुल्य सम्मान बप्पा की उपाधि से विभूषित किया और उस दिन से भोज बप्पा रावल के नाम से प्रसिद्ध हुए | बप्पा रावल का इतिहास 

बप्पा रावल का राज्याभिषेक

बप्पा रावल ने सबसे 35 ईसवी में चित्तौड़ के राजा मान मोरी को युद्ध में हराकर 20 वर्ष की आयु में चित्तौड़ पर अपना शासन  स्थापित कर लिया था इस युद्ध में बप्पा रावल की ऋषि हारित ने सहायता की थी 723 ईस्वी में बप्पा रावल ने राज्य का कार्यकाल संभाला था बप्पा रावल का राज्य अभिषेक उनके एक भील मित्र ने अपने खून से किया इसके बाद यह परंपरा बन गई की जब भी कोई मेवाड़ का राजा बनता तो कोई भील ही उसका राज्य अभिषेक करता था | बप्पा रावल का इतिहास 

बप्पा रावल की मृत्यु 

753 ईसवी में  बप्पा रावल ने  39 वर्ष की आयु में सन्यास लिया इनका समाधि स्थान एक लिंक पूरी से उत्तर में 1 मील दूर स्थित है बप्पा रावल की मृत्यु 753 ईसवी में 97 वर्ष की आयु में नागदा में हुई थी इस वीर और प्रतापी युवराज ने राजा बनने के बाद ही अपने वंश का नाम अपने नाम से जोड़ दिया सिर्फ जोड़ा ही नहीं मेवाड़ वंश  से अपना राजवंश स्थापित कर दिया बप्पा रावल ब्राह्मणों को बहुत अधिक मान सम्मान देते थे | बप्पा रावल का इतिहास 

 

 

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