History

दशरथ मांझी ने पहाड़ को क्यों तोड़ा? दशरथ मांझी का इतिहास 

दशरथ मांझी ने पहाड़ को क्यों तोड़ा? दशरथ मांझी की पत्नी कैसे गिर गई? दशरथ मांझी ने पहाड़ कब काटा था?

दशरथ मांझी ने हथोड़ा और छीनी लेकर अपने अकेले के दम पर 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काट कर एक ऐसी सड़क बना दी जिससे दिन भर में तय किए जाने वाले रास्ते को केवल आधे घंटे में तय किया जाने लगा दशरथ मांझी को माउंटेन मैन के नाम से भी जाना जाता है

दशरथ मांझी ने यह अद्भुत काम अपनी प्रेमिका के लिए कर के दिखाया दशरथ मांझी ने पहाड़ को तोड़ने का कार्य 1960 में शुरू किया था और 1982 में पूरा किया दशरथ मांझी ने अपने संघर्ष और संयम से पहाड़ के गुरुर को तोड़ा था दशरथ मांझी ने कहा कि मुझे जो कुछ भी आता था वह मैं करता रहा उनका मानना था कि व्यक्ति को अपनी धुन में अपना कार्य करते रहना चाहिए .

दशरथ मांझी का जन्म 

दशरथ मांझी का जन्म बिहार के गया जिले में 14 जनवरी 1934 में हुआ दशरथ मांझी गया जिले के पिछड़े गांव ‘गलौर’ में रहते थे इस गांव में स्कूल अस्पताल जैसी कोई भी सुविधा नहीं थी लोगों को पानी के लिए भी 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था ऐसी स्थिति में लोगों को छोटी से छोटी जरूरतों के लिए गांव और कस्बे के बीच एक बड़े पहाड़ को पार करना पड़ता था गरीबी के कारण दशरथ छोटी सी उम्र में ही घर से भागकर धनपात की कोयलो की खदान में काम करने लगे

वहां कुछ सालों तक काम करने के बाद दशरथ मांझी वापस अपने घर लौट आए और “फाल्गुनी” नाम की एक लड़की से शादी कर ली थी दशरथ का परिवार गरीब जरूर था लेकिन वह लोग खुश रहते थे दशरथ मांझी अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते थे जिस तरह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज से किया करते थे शादी के कुछ समय बाद ही उनकी खुशियों को नजर लग गई

1 दिन दशरथ मांझी पहाड़ पर लकड़ियां काट रहे थे तब उनकी पत्नी उनके लिए खाना ले जा रही थी तब उनका पहाड़ से पैर फिसल गया और वह पहाड़ से गिर गई जिससे वह बहुत ही जख्मी हो गई थी और कुछ घंटे बाद उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी यदि फाल्गुनी को उसी समय अस्पताल ले जाया होता तो फाल्गुनी बच सकती थी परंतु यह संभव था क्योंकि गहलोत के गांव से तुरंत हॉस्पिटल ले जाने के लिए पहाड़ के घुमावदार रास्तों को तय करना होता था

इसके बाद दशरथ मांझी बिल्कुल ही टूट गए थे क्योंकि उनकी मोहब्बत ने उनका साथ छोड़ दिया था उनकी पत्नी की मृत्यु ने उनके दिल पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला कुछ समय तक दुखी रहने के बाद दशरथ मांझी ने फैसला किया कि वह इस विशालकाय पहाड़ को काटकर इसके बीच से एक रास्ता निकालेंगे जिससे किसी और की मोहब्बत उसका साथ ना छोड़े और उसके बाद से वह पूरे 22 साल तक पहाड़ को काटने में लगे रहे वह दिन-रात गर्मी सर्दी लगातार मेहनत करते रहे जब दशरथ मांझी ने इस कार्य की शुरुआत की

तब गांव के लोगों ने उनका बहुत ही मजाक बनाया और परिवार वालों ने भी उनका साथ नहीं दिया था लेकिन जैसा कि कहा जाता है संघर्ष में व्यक्ति अकेला होता है और सफलता में दुनियां उसके साथ होती है उसी प्रकार से दशरथ मांझी के साथ हुआ इसके बाद दशरथ मांझी ने उस विशालकाय पहाड़ का सीना चीर कर अपनी पत्नी की मृत्यु का बदला ले लिया पहले घायल गलौर और वजीरगंज की दूरी 60 किलोमीटर हुआ करती थी अब वह 10 किलोमीटर हो गई है जब बच्चों का स्कूल 10 किलोमीटर हुआ करता था अब वह केवल 3 किलोमीटर दूर रह गया है पहले अस्पताल पहुंचने में पूरा दिन लग जाता था और अब अस्पताल पहुंचने के लिए केवल 30 मिनट लगती है आज उस रास्ते को उस गांव के अतिरिक्त 60 और गांव भी इस्तेमाल करते हैं जब दशरथ मांझी ने इस काम को शुरू किया था तब लोग उनको पागल कहते थे

दशरथ मांझी की उपलब्धियां 

दशरथ मांझी की इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने ‘पदम श्री’ के लिए उनके नाम का प्रस्ताव रखा था और साथ ही दशरथ मांझी के नाम पर पक्की सड़क और अस्पताल निर्माण का वादा किया था मार्च 2014 में आमिर खान के द्वारा चलाए गए टीवी शो में “सत्यमेव जयते” सीजन 2 का पहला एपिसोड दशरथ मांझी को समर्पित किया गया

आमिर खान ने दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मान जी और उनकी बहू बसंती देवी से मुलाकात की थी और उनकी गरीबी को देखते हुए उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया था लेकिन 1 अप्रैल 2014 को पैसे ना होने की वजह से बसंती देवी की मृत्यु हो गई थी इसके बाद दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी ने कहा था कि यदि आमिर खान ने सहायता की होती तो उनकी पत्नी की जान बच सकती थी दशरथ मांझी ने अपने अंतिम समय में अपने ऊपर फिल्म बनाने का विशेषाधिकार दे दिया था ताकि वह दुनिया को यह बता सके कि सफलता पाने के लिए निरंतर संघर्ष करते रहे.

दशरथ मांझी की मृत्यु 

17 अगस्त 2007 को कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए दिल्ली के ‘एम्स हॉस्पिटल’ में दशरथ मांझी की मृत्यु हो गई थी उनका अंतिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ किया गया दशरथ मांझी का यह अद्भुत कार्य आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा 

हां मैंने माना कि जिंदगी कांटो भरा सफर है, 

लेकिन इस से गुजर जाना ही असली पहचान है,

 बने बनाए रास्तों पर तो सब चलते हैं,

 खुद जो रास्ते बनाए वही तो इंसान है 

 

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