सामान्य ज्ञान

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसका महत्व

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसका क्या महत्व है

महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है

हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी वाले दिन शिवरात्रि होती है लेकिन मान्यता है “ फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी ” के दिन आने वाले शिवरात्रि सबसे बड़ी शिवरात्रि होती है इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है  पौराणिक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने पूजा की थी इसी कारण महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है इसके अलावा यह भी माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने शिवरात्रि के दिन ही शिव जी के रूद्र रूप को प्रकट किया था

 दूसरी कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था इसी वजह से नेपाल में महाशिवरात्रि के 3 दिन पहले से ही मंदिरों को मंडप की तरह सजाया जाता है और भगवान शिव और माता पार्वती को दूल्हा दुल्हन बनाकर घर-घर घुमाया जाता है और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह करवाया जाता है  यह भी माना जाता है कि कुंवारी कन्याओं द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत रखने से शादी का सयोग जल्दी बनता है इसी कथा से प्रचलित कथा के मुताबिक भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इस से बचाने की घटना के उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है जब समुंद्र मंथन के लिए देवता और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तो अमृत निकलने से पहले कालकूट नाम का विष निकला था यह विष  इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट किया जा सकता था  इस विष को केवल भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे इसके बाद भगवान शिव ने कालकूट नाम के विष को अपने कंठ में रख लिया था इससे उनका कंठ नीला पड़ गया इसी घटना के बाद भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया

| महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसका महत्व |

महाशिवरात्रि का महत्व 

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधुओं के लिए बहुत ही महत्व रखती है महाशिवरात्रि के दिन शिव के भगत कावड़ से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं महाशिवरात्रि का व्रत महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है विवाहित महिलाएं अपने सुखद जीवन के लिए इस व्रत को रखती है महाशिवरात्रि के दिन मंदिरों में शिव भक्तों की भारी भीड़ होती है शिव भगत  व्रत रखते हैं शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते हैं और भगवान शिव की विधिवत तरीके से पूजा करते हैं कई जगहों पर मंदिरों में जागरण करवाया जाता है और भंडारा लगाया जाता है | महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसका महत्व |

सावन की शिवरात्रि 

 हिंदू पुराण में महाशिवरात्रि से जुड़ी कई वजह बताई गई है शास्त्रों में बताया गया है कि सावन का महीना भगवान शिव को बहुत ही पसंद है इस महीने में कई व्रत और त्योहार आते हैं इस महीने में सावन की शिवरात्रि भी आती है माना जाता है कि सावन के महीने में आने वाली शिवरात्रि की यदि कोई पुरुष या कन्या सच्चे दिल से  भगवान शिव की पूजा करते हैं तो उन्हें मनचाहा वर या वधू मिल जाता है सावन की शिवरात्रि का यदि कोई सच्चे मन से व्रत रखे तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं

इस दिन लोग भगवान शिव को खुश करने के लिए व्रत रखते हैं हिंदू धर्म में सावन में आने वाली शिवरात्रि बहुत ही महत्व रखती है अपने आराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव भगत कावड़ यात्रा पर भी जाते हैं इस यात्रा के दौरान शिवभक्त गंगा नदी का पवित्र जल अपने कंधों पर लाकर सावन की शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चढ़ाते हैं साल में 12 या 13 शिवरात्रि होती है हर महीने एक शिवरात्रि  पड़ती  हैं जो पूर्णिमा से 1 दिन पहले त्रयोदशी को होती है लेकिन इन सभी शिव रात्रि मे 2 सबसे महत्वपूर्ण है पहली है फागुन महीने में पड़ने वाली महाशिवरात्रि और दूसरी है सावन की शिवरात्रि हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की शिवरात्रि में गहरी आस्था है

यह त्यौहार भोलेनाथ को समर्पित है माना जाता है कि सावन की शिवरात्रि में रात के समय की पूजा करने से भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी शिवरात्रि पर सच्चे मन से भोले भंडारी की आराधना करता है तो उसे अपने जीवन में सफलता ,धनसंपदा और खुशहाली मिलती है यही नहीं बुरी बलाए भी कोसों दूर रहती हैं भगवान शिव को सभी देवताओं में सबसे सरल माना जाता है और उन्हें मनाने में ज्यादा जतन नहीं करने पड़ते भोलेनाथ केवल सच्ची भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं यही वजह है कि भक्त उन्हें प्यार से भोले बाबा बुलाते हैं सावन की शिवरात्रि मनाने में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है |महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसका क्या महत्व है

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महाशिवरात्रि की व्रत कथा 

किसी जंगल में गुरु ध्रुव नाम का एक शिकारी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार करता और उसी से अपने परिवार का भरण पोषण किया करता एक बार शिवरात्रि के दिन जब वह शिकार करने के लिए निकला तो संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार ना मिल सका उसके बच्चे, पत्नी माता-पिता भूखा रहना पड़ेगा इस बात से वह दुखी हो गया इसके बाद सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के पास गया वह घाट के किनारे थोड़ा सा जल लेकर पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि उसे उम्मीद थी कि कोई ना कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए इस जलाशय पर जरूर आएगा

वह पेड़ बेलपत्र का पेड़ था उसके नीचे एक शिवलिंग भी था जो कि सूखे बेल पत्रों से ढका हुआ था रात का पहला पहर बीतने से पहले एक हिरण वहां पर पानी पीने के लिए आया उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण सादा ऐसा करने में उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर जा गिरी और अनजाने में ही सही शिकारी की पहले पहर की पूजा हो गई जब पत्तों की आहट सुनी तो हिरण ने घबराकर ऊपर की ओर देखा और  शिकारी से कांपते हुए स्वर में बोली मुझे मत मारो शिकारी ने कहा मैं और मेरा पूरा परिवार भूखा है मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता है मैंने वादा किया कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर वापस यहां लौट आएगी

इसके बाद शिकारी को उसकी बात का भरोसा नहीं हुआ तब हीरन ने कहा कि जिस प्रकार यह धरती सत्य पर टिकी हुई है उसी प्रकार मैं भी सत्य कह रही हूं  इसके बाद शिकारी को उस पर दया आ गई इसके बाद शिकारी ने हिरण को जाने दिया इसके बाद शिकारी की पहले पहर की तरह दूसरे पहर  की भी शुरुआत हो गई थी इसके बाद वह शिकारी सोचने लगा कि यदि इनमें से कोई भी  हिरण लौट कर वापस नहीं आई तो उसके परिवार का क्या होगा इसके बाद उस शिकारी की पहले की तरह तीसरे पहर की भी शुरुआत हो गई थी जब तीसरे पहर में हिरण आया तो उसने शिकारी से पूछा कि तुम क्या चाहते हो

तब शिकारी ने कहा कि मैं तुम्हारा वध करके  अपने परिवार को भोजन देना चाहता हूं यह बात सुनकर वह हिरण बोला कि मैं धन्य हूं मेरा शरीर किसी के काम आएगा परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जाएगा इसके बाद वह हिरण बोला कि मुझे वापस जाने दो मैं अपने बच्चों को अपनी पत्नी के हाथों में सौंपा उसके बाद वापस लौट आऊंगा शिकारी का  हृदय पूजा के कारण अपने पापों को धो चुका था और शुद्ध हो गया था इसके बाद रात्रि का अंतिम पहर शुरू होते ही वह सभी हिरन हिरणी को अपने बच्चों सहित शिकारी के पास आ पहुंचे जैसे ही शिकारी ने उन्हें मारने के लिए धनुष उठाया तो पहले की तरह ही उसकी चौथे पहर की भी शुरुआत हो गई थी इसके बाद उस शिकारी के भगवान शिव की कृपा से सारे पाप भसम हो गए थे इसके बाद उस शिकारी को भगवान शिव साक्षात दर्शन करवाते हैं 

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