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रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास

रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म :-

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 में उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर गांव में हुआ था इनके पूर्वज ब्रिटिश प्रधान गवालियर के निवासी थे इनके पिता जी का नाम मुरलीधर था और माता जी का नाम मुंलमती था इनके पिता जी एक नगर निगम पालिका में कर्मचारी थे इनकी आर्थिक व्यवस्था बहुत ही कमजोर थी जिसके कारण राम प्रसाद बिस्मिल को आठवीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी

रामप्रसाद जी को हिंदी का बहुत अधिक ज्ञान था  इन्होंने अपने पिताजी से हिंदी का ज्ञान लिया था और एक मौलवी से उर्दू सीखी थी इसलिए उन्होंने हिंदी कपत्ल लिखने में अपने जुनून को जारी रखा राम प्रसाद बिस्मिल जी बचपन में देश की हालत को देखकर बहुत ही चिंतित रहते थे और वह देशभक्ति कविताएं लिखते थे रामप्रसाद जी आर्य समाज का भी हिस्सा बन गए थे जो कि उस  वक्त रूढ़िवादी परंपराओं के विरुद्ध संघर्ष कर रहा था बिस्मिल जी ने 1916 में 19 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी मार्ग में कदम रखा था | रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास 

राम प्रसाद बिस्मिल जी की सोमदेव से  मुलाकात:-

रामप्रसाद जब गवर्नमेंट स्कूल शाहजहांपुर में आठवीं कक्षा के छात्र थे तभी स्वामी सोमदेव का आर्य समाज भवन में आगमन हुआ मुंशी इंद्रजीत ने राम प्रसाद गोस्वामी जी की सेवा में नियुक्त कर दिया यहीं से उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों में परिवर्तन शुरू हुआ एक और सत्यार्थ प्रकाश का गंभीर अध्ययन और दूसरी ओर स्वामी सोमदेव के साथ राजनीतिक विषयों पर खुली चर्चा से उनके मन में देश प्रेम की भावना जागृत हुई 

बिस्मिल द्वारा बनाया गया संगठन :-

राम प्रसाद बिस्मिल ने एक मात्री वेदी क्रांतिकारी संगठन बनाया जिसका लक्ष्य था अंग्रेजों से लोहा लेना 28 जनवरी 1918 को बिस्मिल  ने पर्चे बांटने शुरू किए जिसका नाम था देशवासियों के लिए संदेश इसके बाद संगठन के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए उन्होंने 1918 में अंग्रेजों को तीन बार लूटा था | रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास 

राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी कार्य:-

रामप्रसाद स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रांतिकारी सेनानी थे उस समय आम भारतीयों को भी अंग्रेजों के प्रहार का सामना करना पड़ रहा था इसलिए रामप्रसाद ने बहुत ही कम उम्र में अपनी जिंदगी को स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित करने का फैसला किया इसके बाद आठवीं  तक अपनी शिक्षा पूरी की और वह “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” के सदस्य बन गए इसके बाद क्रांतिकारी संगठनों के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल ने चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु  गोविंद आदि के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और रामप्रसाद ने 9 क्रांतिकारियों के साथ  हाथ मिलाकर “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” के लिए काम किया

राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा सरकारी खजाने की लूट:-

राम प्रसाद बिस्मिल और उसके सहयोगी अशफाक उल्ला खान के गुरु मंत्र का पालन करके उन्होंने काकोरी ट्रेन डकैती के माध्यम से सरकारी खजाने को लूट लिया 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड की इस घटना को लोकप्रिय रूप से जाना जाने लगा 9 क्रांतिकारियों ने  लखनऊ के निकट सरकार के पैसों का परिवहन करने वाली ट्रेन को लूट लिया और  भारत के सशस्त्र संघर्ष के लिए हथियार खरीदने के लिए इसका इस्तेमाल किया जब पुलिस ने इन्हें मैनपुरी में खोजना शुरू किया तो यह दिल्ली में जाकर वह किताब बेचने लगे जो कि गैरकानूनी थी

जिन किताबों में अंग्रेजों के विरुद्ध लिखा हुआ था जब उन्हें लगा कि वह पकड़े जा सकते हैं तो वह बची हुई किताबों को लेकर भाग गए  इस घटना ने ब्रिटिश सरकार से अधिकारियों के विभिन्न वर्गों के बीच एक भड़क पैदा कर दी  एक बार वह दिल्ली और आगरा के बीच अपने साथियों के साथ मिलकर लूट का प्लान बना रहे थे तभी वहां पुलिस आ गई और दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई बिस्मिल जी जमुना नदी में कूद गए थे और पानी में तैरते हुए बाहर निकल आए

परंतु उनके दो साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया पुलिस को लगा कि बिस्मिल में फायरिंग में मारा गया परंतु बाद में पुलिस को पता चल गया कि वह जिंदा है इसके बाद बिस्मिल जी दिल्ली में छुपकर रहने लगे 2 साल तक सरकार की आंखों से बच कर जगह जगह पर लोगों को जागरूक करते रहे और इसके लिए क्रांतिकारियों को दंडित किया गया राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान और राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के नाम काकोरी ट्रेन डकैती में थे और उन सभी को मौत की सजा सुनाई गई इनके अंदर देश को आजाद करने का जुनून था | रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास 

बिस्मिल जी द्वारा पूर्ण स्वराज में योगदान :-

रामप्रसाद जी कांग्रेस की मीटिंग में भी जाते थे जहां पर पूर्ण स्वराज को आगे बढ़ाने में उनका अहम योगदान रहा उसी समय असहयोग आंदोलन भी बड़ी ही जोर से चल रहा था वह शाजापुर में वापस आकर अंग्रेजों का कोई भी सहयोग ना करें इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करने लगे इनके भाषण का लोगों पर इतना असर पड़ा कि वह अंग्रेजो के खिलाफ भड़क उठे जब चोरी चोरा कांड चल रहा था तब इन्होंने लोगों से कहा कि ऐसे आजादी कभी नहीं मिलेगी चोरी चोरा कांड में लोगों के गुस्से के लिए उनके भाषण को जिम्मेदार बताया है इसी कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया इस कारण से बिस्मिल और कई क्रांतिकारी नेता कांग्रेस से नाराज हो गए थे | रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास 

राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा साहित्यिक कार्य :-

राम प्रसाद बिस्मिल ने बहुत सारी कविताएं और शायरियां लिखी थी बहुत प्रसिद्ध है उनकी क्रांतिकारी भावना जिस कारण वह भारत की स्वतंत्रता चाहते थे जब वह देशभक्ति कविताएं लिखते थे तो उनके जीवन का मूल्य है उनकी प्रमुख प्रेरणा हुआ करती थी सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में सबसे प्रसिद्ध कविता है

इसका श्रेय राम प्रसाद बिस्मिल को जाता है हालांकि लोग राय देते हैं कि कविताएं मूल रूप से बिस्मिल के आजाद अजीम बादी ने लिखी थी जब वह काकोरी कांड की घटना  के बाद मुख्य रूप से जेल में थे तब पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी थी इनके अंदर देश के प्रति बहुत अधिक प्यार था इन्हें न हीं तो अपने परिवार की चिंता थी और न हीं अपनी थी इनके दिल में देश को आजाद कराने का जो जुनून था वह अलग ही दिख रहा था 

राम प्रसाद बिस्मिल जी की मृत्यु :-

रामप्रसाद जी और उनके साथी लखनऊ के काकोरी मे सरकारी ट्रेन को लूटना चाहते थे परंतु वह पकड़े गए और वहां पर फायरिंग हुई जिसमें एक हिंदुस्तानी मारा गया इसके बाद उन पर केस दर्ज किया गया और 19 दिसंबर 1927 को उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी उस समय उनकी आयु केवल 30 वर्ष थीअंतिम संस्कार के लिए बिस्मिल जी के शरीर को राप्ती नदी के पास ले जाया गया जिसे आज घाट के नाम से जाना जाता है 

राम प्रसाद द्वारा लिखी गई शायरी:-

ना चाहूं मान दुनिया में,  ना चाहूं स्वर्ग जाना 

मुझे वर दे यही माता, रहूं भारत पर दीवाना

 करूं मैं कौम की सेवा, पड़े चाहे करोड़ों  दुख

अगर फिर जन्म लूं आकर, तो भारत में ही हो आना 

रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय और इतिहास

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