सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास और जीवनी हिंदी में
हरि सिंह का जन्म
हरि सिंह नलवा का जन्म गुजरां वाला पंजाब में 21 सितंबर 1895 ईस्वी में उपल परिवार में हुआ था हरि सिंह ने वीरों के घर में जन्म लिया था उस समय सीख मिल कर अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ लड़ रहे थे क्योंकि उनके दादा हरिदास सिंह जी अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए थे इसीलिए हरि सिंह के खून में ही वीरता और साहस कूट कूट कर भरा हुआ था
हरि सिंह के मन में बचपन से ही सिख धर्म के नियमों को दिल से मानने और इंसानियत की रक्षा करने की भावना जन्म ले चुकी थी हरि सिंह के पिताजी का नाम अमर सिंह जामवाल था और इनकी माता जी का नाम धर्म कौर था जब हरि सिंह 7 वर्ष के हुए तो इनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी इसके बाद उनकी माताजी धर्म कोर इन्हें लेकर अपने भाइयों के पास आ गई थी वहीं पर हरि सिंह ने पंजाबी और फारसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया यहीं पर हरि सिंह ने घुड़सवारी, तलवारबाजी और बंदूक चलाना सीखा था
| सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास |
हरि सिंह द्वारा अमृत पान
10 वर्ष की आयु में हरि सिंह ने अमृत पान कर लिया था और 14 वर्ष की आयु में सेना के कमांडो बन गए थे जब हरि सिंह 13 वर्ष के थे तब उनकी मां धर्म कोर उन्हें वापस पंजाब गुजरा वाली ले आई 1801 में रणजीत सिंह पंजाब के महाराजा बन गए थे हरि सिंह को राज महल की बजाय युद्धभूमि बहुत अधिक पसंद थी उन्हें युद्ध करना बहुत ही अच्छा लगता था हरि सिंह नलवा का इतिहास
हरि सिंह का विवाह
हरि सिंह ने अपने जीवन में चार विवाह किए थे उनकी चौथी पत्नी महारानी तारा देवी से उन्हें एक बेटा हुआ था जिसका नाम करण सिंह है |सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास |
युद्ध की शिक्षा
उस समय पंजाब पर सरदार रणजीत सिंह का राज था जो ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत और पूरी दुनिया में सेना का गठन किया था जो अपने सैनिकों की युद्ध शिक्षा के लिए विदेशी आर्मी जनरल्स को बुलाया करते थे आज पाकिस्तान में फ्रेंच जनरल्स की कबरें हैं जो भारत में सिख सैनिकों को शिक्षा देने आया करते थे
महाराजा रणजीत सिंह ने केवल युद्ध शिक्षा नहीं बल्कि अपनी प्रजा और सेना को भी विदेशी भाषाओं की शिक्षा तक दिलवाई थी पंजाब जिसका एक बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में भी है उसने महाराजा रणजीत सिंह को भुला दिया है लेकिन भारत उस न्याय प्रिय और शक्तिशाली राजा को नहीं भूला है क्योंकि हीरे की पहचान जोहरी ही कर सकता है
हरि सिंह को नलवा की उपाधि
सन 1804 में जब एक बार महाराजा रंजीत सिंह ने आर्मी की भर्ती निकाली तो हरिसिंह भी उस में भाग लेने के लिए पहुंचे हरि सिंह के घुड़सवारी और युद्ध कौशल से महाराजा रणजीत सिंह बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपनी सेना का सिपहसालार बना दिया इसी साल हरि सिंह ने ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसके बाद रणजीत सिंह ने हरी सिंह को 800 घुड़सवारो की सेना दे दी
एक बार एक शेर ने हरि सिंह पर हमला कर उनके घोड़े को मार डाला था जिसके बाद हरि सिंह ने अकेले ही अपनी तलवार से उस शेर को मौत के घाट उतार दिया और अपने हाथों से उस शेर के जबड़े को फाड़ डाला था उस दिन के बाद से हरि सिंह को नलवा की उपाधि मिल गई और उन्हें बाघमार भी कहा जाने लगा नलवा का अर्थ ही है शेर के तरह पंचों वाला इस शेर की दहाड़ से पठानों के मन में डर पैदा हो गया था | सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास |
हरि सिंह द्वारा भारत मां की रक्षा
हरि सिंह नलवा कश्मीर पेशावर और हजारा के गवर्नर रहे हरि सिंह ने अपने महाराजा रणजीत सिंह के शासन का विस्तार है खाइबर दर्रे तक तक कर लिया था हरिसिंह एक कुशल रणनीतिकार थे इसलिए वह जानते थे इस तरह से विदेशी आक्रमणकारियों से भारत मां की रक्षा करनी है
क्योंकि इससे पहले भारत पर जब भी विदेशी आक्रमण हुए खाइबर पास से हुए और यह बात इतिहास में दर्ज है कि इस जगह पर कब्जा करने के बाद से इस रास्ते से भारत पर कोई आक्रमण नहीं हुआ हरि सिंह नलवा एक महान योद्धा इसलिए भी कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपने से बड़ी बड़ी सेनाओं को हराकर अपनी विजय का परचम लहराया
जमरूद किले का निर्माण
हरि सिंह ने कसूर, सियालकोट ,मुल्तान ,कश्मीर ,पेशावर और जमरूद की बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़ी पाकिस्तान के एक शहर का नाम हरि सिंह नलवा के नाम पर हरिपुर शहर रखा गया था लेकिन पाकिस्तान हरि सिंह की शहादत को भूल चुका है हरि सिंह ने खैबर पास के नजदीक जमरूद किले का निर्माण किया जिससे हरि सिंह ने अपनी सेना का बेस कैंप बनाया था अफगानिस्तान के पठान हरि सिंह से डरते थे लेकिन हरि सिंह ने उनकी बहू बेटियों की इज्जत की जिसके बारे में एक पठान लड़की बीवी बानो का किस्सा मशहूर है हरि सिंह ने जमरूद किले में शेरों की जगह राज किया हरि सिंह नलवा का इतिहास
राम राज्य की स्थापना
हरि सिंह ने बहुत से देशों को जीता उसने जिस प्रदेश को जीता वहां के लोग दुखी नहीं बल्कि सुखी हो गए क्योंकि इसने वहां पर भी धर्म का राज्य स्थापित किया चोरी लूट मार हत्या जबरदस्ती को खत्म कर राम राज्य की स्थापना की जिसके मन में जीते हुए प्रदेशों की जनता के प्रति द्वेष नहीं था और यह भी उनकी मां बेटियों का सम्मान करता था हरि सिंह डोगरा शासन के अंतिम राजा थे जिन्होंने जम्मू के राज्य को एक सदी तक जोड़े रखा जब
हरिसिंह द्वारा स्टैंड सीटल की घोषणा
जम्मू और कश्मीर राज्य86,024 वर्ग मील के कुल क्षेत्रफल में बसा है यह सन 1947 में विभाजन के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मन की वजह रहा है आजादी से पहले यहां के शासक हिंदू महाराजा हरि सिंह थे महाराजा हरि सिंह ने 15 अगस्त 1947 से पहले स्टैंड सीटल रहने की घोषणा की थी
जमरूद किले पर आक्रमण
जब 1837 में महाराजा रणजीत सिंह के पोते की शादी में शामिल होने 7400 सिख सैनिक इस किले से शादी के लिए रवाना हो चुके थे तो दुश्मन ने इस मौके का फायदा उठाकर इस किले पर आक्रमण कर दिया दुश्मन के इस अचानक हुए हमले और दुश्मन की तादाद बहुत ज्यादा होने के बाद भी हरी सिंह नलवा ने उन से लड़ना जारी रखा | हरि सिंह नलवा का इतिहास |
हरि सिंह की मृत्यु
दुश्मन की किए इस आक्रमण में हरि सिंह की 26 अप्रैल 1961 को मृत्यु हो गई हरि सिंह ने मरने से पहले अपने सैनिकों को आदेश दिया उनकी मौत की खबर बाहर नहीं जानी चाहिए क्योंकि दुश्मन की फौज में हरि सिंह का डर इसलिए बाहर बैठे दुश्मन फोज 1 हफ्ते तक हरि सिंह के खौफ में किले पर चढ़ाई नहीं कर सकी और इसी बीच सैनिकों के आ जाने से अफगानीयो को मैदान छोड़कर भागना पड़ा इस बार भारत के इस वीर ने अपनी जान देकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की और अपने देश का झंडा बुलंद रखा था
स्त्री के प्रति मान सम्मान की भावना
हरि सिंह कुशल फाइटर ही नहीं थे बल्कि उनके दिल में सच्चाई देश की रक्षा करने की भावना के साथ साथ सभी धर्मों का बराबर सत्कार मान सम्मान था भारत के यह वीर दुश्मनों के लिए काल और दोस्तों के लिए फरिश्ता रहे हैं भारत देश की धरती समय-समय पर ऐसे वीरों को जन्म देती रही है जिनका नाम भारत और विश्व के इतिहास में दर्ज हो चुका है
हरि सिंह भारत देश के एक महान योद्धा कुशल सिपहसालार और मातृभूमि के लिए मर मिटने वाले एक ऐसे सरदार थे जो सिर्फ नाम से ही सिंह नहीं था बल्कि उसके नाम के साथ शेर का नाम जोड़ा गया जिस के चर्चे दूर-दूर तक थे जिसमेअफगानिस्तान तक भारत का परचम लहराया था और जिसका नाम सुनते ही अफगानिस्तान के बड़े-बड़े राजा घबरा जाते थे जिसके विजय रथ को रोकना सबके लिए असंभव सा हो गया था | सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास |