History

श्रीरंगम मंदिर का इतिहास 

श्रीरंगम मंदिर का इतिहास, मंदिर का निर्माण, श्रीरंगम मंदिर का उत्सव, रंग जयंती का आयोजन

श्रीरंगम मंदिर का इतिहास

श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर भगवान रंगनाथ को समर्पित एक हिंदू मंदिर है भगवान रंगनाथ को विष्णु जी का अवतार माना जाता है इस मंदिर की स्थापना आज से लगभग 157 वर्ष पूर्व सन 1851 में श्री रंग देशिक स्वामी जी के हाथों हुई थी उस समय इस मंदिर के निर्माण में लगभग 45 लाख रुपए खर्च हुए थे इस मंदिर के पूरा होने में 7 वर्ष का समय लगा था यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित है इसलिए इसे श्रीरंगम मंदिर भी कहा जाता है यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित 108 मुख्य मंदिरों में भी शामिल है मंदिर में पूजा करने की है

थिंककलाई प्रथा का पालन किया जाता है दक्षिण भारत का यह सबसे शानदार वैष्णव मंदिर है जो किंबदंती और इतिहास दोनों में समृद्ध है यह मंदिर कावेरी नदी के द्वीप पर बना हुआ है मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार को राजा गोपुरम का नाम दिया गया है जो 13% के क्षेत्रफल में बना हुआ है और 239.501 फीट ऊंचा है तमिल मर्गा जूही, दिसंबर जनवरी माह में यहां हर साल 21 दिन के महोत्सव का आयोजन किया जाता है

जिसमें 1 मिलियन से भी ज्यादा श्रद्धालु आते हैं श्रीरंगम मंदिर को विश्व के सबसे विशाल हिंदू मंदिरों में भी शामिल किया गया है मंदिर में 156 एकड़ (631000 मीटर वर्ग )में 4116 मीटर अर्थात (107,10 फीट) की परिधि के साथ फैला हुआ है जो इसे भारत का सबसे बड़ा मंदिर बनाता है भारत का सबसे बड़ा मंदिर होने के साथ-साथ यह दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मंदिरों में से एक है

 इतिहास मंदिर से जुड़े हुए पुरातात्विक शिलालेख हमें 10 वीं शताब्दी में ही दिखाई देते हैं मंदिर में दिखने वाले शिलालेख चोला, पंड्या और विजय नगर साम्राज्य से संबंधित है जिन्होंने तिरुचिरापल्ली जिले पर शासन किया था | श्रीरंगम मंदिर का इतिहास |

 मंदिर का निर्माण

 मंदिर का इतिहास हमें नौवी से सोलवीं सताब्दी के बीच का दिखाई देता है और मंदिर से जुड़ा हुआ पुरातात्विक समाज भी हमें इसके आसपास दिखाई देता है राजा ने रंगनाथस्वामी मंदिर परिसर को विकसित कर दुनिया के सबसे विशाल मंदिरों में से एक बनाया इतिहासकारों के अनुसार जिन साम्राज्य ने दक्षिण भारत में राज किया मुख्यतः चोला ,पंड्या और नायक वे समय-समय पर मंदिर का नवीनीकरण की करते रहे थे और उन्होंने तमिल वास्तुकला के आधार पर ही मंदिर का निर्माण करवाया था इन सम्राज्यों के बीच हुए आंतरिक विवाद के समय भी शासकों ने मंदिर की सुरक्षा और इसके नवीनीकरण पर ज्यादा ध्यान दिया था | श्रीरंगम मंदिर का इतिहास |

पौराणिक कथा

 कहा जाता है कि चोला राजा ने मंदिर को सोफे उपहार स्वरूप दिए थे कुछ इतिहासकारों ने राजा का नाम राज महेंद्र चोला बताया जो “राजेंद्र चोला द्वितीय” के सुपुत्र के थे 1310 से1311 में जब मलिक काफूर ने साम्राज्य पर आक्रमण किया तब उन्होंने देवताओं की मूर्तियां भी चुरा ली और वे उन्हें दिल्ली ले कर चले गए इस साहसी शोषण में श्रीरंगम के सभी भक्त दिल्ली निकल गए और मंदिर का इतिहास बता कर उन्होंने सम्राट को मंत्रमुग्ध किया उनकी प्रतिभा को देखकर सम्राट काफी खुश हो गए और उन्होंने उपहार स्वरूप श्रीरंगम की प्रतिमा दे दी इसके बाद धीरे-धीरे समय बदलता गया | श्रीरंगम मंदिर का इतिहास |

श्रीरंगम मंदिर का उत्सव

हिंदू मान्यता के अनुसार श्रीरंगनाथन भगवान विष्णु का ही अवतार है मंदिर में हर एक वार्षिक उत्सव मनाया जाता है उत्सव के समय देवी देवताओं की मूर्तियों को गहनों से सुशोभित किया जाता है स्थानिक लोग इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं 20 दिनों तक चलने वाला उत्सव मनाया जाता है इसके पहले 10 दिन पागल पथू उत्सव मनाया जाता है और अगले 10 दिनों तक रा पथु नाम का उत्सव मनाया जाता है

श्रीरंग मंदिर ब्रह्मोत्सवम उत्सव का आयोजन अप्रैल में किया जाता है “अंकुर पुराण ,रक्षाबंधन,भेरीराथन ,यागसला जैसी” पूर्व तैयारियां उत्सव के पहले की जाती हैं शाम को चितराई सड़क पर उत्सव का आयोजन किया जाता है उत्सव के दूसरे दिन देवता की प्रतिमा को मंदिर में गार्डन के भीतर ले जाया जाता है इसके बाद कावेरी नदी से होते हुए देवताओं को तीसरे दिन जीरिया पुरम ले जाया जाता है |श्रीरंगम मंदिर का इतिहास |

रंग जयंती का आयोजन

मंदिर में मनाए जाने वाले वार्षिक स्वर्ण आभूषण उत्सव को जेष्ठअभिषेक के नाम से जाना जाता है जो जून, जुलाई के समय में मनाया जाता है इस उत्सव में देवता की प्रतिमाओं को सोने और चांदी के भगोनों में पानी लेकर डुबाया जाता है

 श्रीरंगम मंदिर के दूसरे मुख्य उत्सव में रथ उत्सव शामिल है जिसका आयोजन जनवरी,फरवरी में किया जाता है और मंदिर के मुख्य देवता को रथ पर बैठा कर मंदिर की परिक्रमा कराई जाती है इसके साथ ही मंदिर में  चैत्र पूर्णिमा का भी आयोजन किया जाता है इसके साथ-साथ मंदिर में वसंतोत्सव का भी आयोजन (मई-जून) में किया जाता है सूत्रों के अनुसार इसका आयोजन 1444 ए.डी.से किया जा रहा है

वर्ष में केवल एक बार वैकुंठ एकादशी के दिन ही यहां बैकुंठ लोक और स्वर्ग के द्वार खोले जाते हैं ऐसा माना जाता है कि इस दिन परम पद में प्रविष्ट होने वाला इंसान मोक्ष प्राप्त करके बैकुंठ धाम जाता है मंदिर में वैकुंठ एकादशी के दिन ही सबसे ज्यादा भीड़ होती है शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन रंग नाथ मंदिर में हर साल रंग जयंती का आयोजन किया जाता है

पुण्य की प्राप्ति

रंगनाथ स्वामी के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाने वाला यह उत्सव पूरे 8 दिन तक चलता है  इस पवित्र स्थान पर बहने वाली कावेरी नदी में कृष्ण दशमी के दिन स्नान करने से व्यक्ति को अष्ट तीर्थ करने के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है

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