History

चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास और जीवन परिचय 

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 

चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व में पाटिलपुत्र में हुआ था चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म मौर्य नामक जाति में हुआ था चंद्रगुप्त के पिता का नाम नंदा एवं उनकी माता जी का नाम मुरा था इनके पिता जी मौर्य जाति के मुखिया थे जो कि कालांतर में एक सीमांत संघर्ष में मारे गए थे पिता की मृत्यु के बाद चंद्रगुप्त मौर्य की माता पाटलिपुत्र पहुंची और वहीं पर चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म हुआ चंद्रगुप्त मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे

इसके बाद 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य का राज्य अभिषेक हुआ जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म हुआ उस समय उनके जीवन को लेकर कई खतरे थे और इन खतरों को देखते हुए सुरक्षा के ख्याल से चंद्रगुप्त के मामा ने उन्हें एक गौशाला में छोड़ दिया गौशाला में एक गडरिया ने चंद्रगुप्त को पाया और उन्हें अपने घर ले गया उस गडरिया ने चंद्रगुप्त का पालन पोषण एक पुत्र की तरह किया और थोड़ा बड़ा होने पर चंद्रगुप्त को एक शिकारी के हाथ बेच दिया | चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य की प्रतिभा 

चंद्रगुप्त मौर्य ने एक राजकील्म नाम के खेल में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया क्योंकि वह उस खेल में खुद राजा बनते थे वह अपने संगी साथियों को अपने राज्य का कर्मचारी बनाते थे वह राज्यसभा में बैठकर न्याय का कार्य करते थे और इसी प्रकार के कई अन्य खेल भी अपने बचपन में खेला करते थे चाणक्य ने पहली बार चंद्रगुप्त को वही खेल खेलते हुए देखा था और उसने चंद्रगुप्त की प्रतिभा को देखते हुए 1000 में खरीद लिया चंद्रगुप्त मौर्य बचपन में बहुत ही बुद्धिमान एवं प्रतिभाशाली थे और चाणक्य ने उस प्रतिभावान एवं बुद्धिमान बच्चे के जीवन को अपनी शिक्षा से नई दिशा दी जो कि आगे चलकर भारत के इतिहास में अजर और अमर हो गई | चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

भारतीय इतिहास की प्रसिद्ध घटना 

चाणक्य और चंद्रगुप्त की मुलाकात भारतीय इतिहास की एक प्रसिद्ध घटना है चाणक्य ज्ञान की खोज के लिए पाटिल पुत्र का भ्रमण कर रहे थे वहीं पर उन्हें चंद्रगुप्त मौर्य दिखाई पड़े जिस समय चाणक्य पाटलिपुत्र का भ्रमण कर रहे थे उस समय मगध साम्राज्य पर नंद वंश के शासकों का शासन था, नंद वंश के शासक घनानंद वहां के राजा थे घनानंद ने चाणक्य को अपनी दानशाला का अध्यक्ष नियुक्त किया था परंतु चाणक्य बहुत ही कुरूप थे जिस वजह से घनानंद ने उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया इस अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने नंद वंश को समाप्त करने का निर्णय लिया और इसी उद्देश्य से उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को खरीदा तथा उन्हें शिक्षित किया उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को हर वह शिक्षा उपलब्ध कराई जो कि किसी भी व्यक्ति के राजा बनने के लिए महत्वपूर्ण थी |चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को एक ऐसा योद्धा, एक ऐसा ज्ञानी बनाया जिसका लोहा उस समय पूरी दुनिया मानती थी | चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य का विवाह 

चंद्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था ऐसा माना जाता है कि दुर्धरा चंद्रगुप्त मौर्य के सबसे बड़े मामा की बेटी थी चंद्रगुप्त के बड़े मामा राजा घनानंद के खिलाफ चंद्रगुप्त मौर्य का समर्थन करने पाटिल पुत्र आई थी कुछ लोग दुर्धरा को घनानंद की बेटी भी मानते हैं इतिहासकारों में इस विषय पर मतभेद हैं चंद्रगुप्त मौर्य के बेटे का नाम बिंदुसार था जोकि मौर्य साम्राज्य का दूसरा सम्राट बना था दुर्धरा अपने बेटे को सम्राट बनते हुए नहीं देख पाई थी क्योंकि उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई थी जब दुर्धरा 9 महीने की गर्भवती हुई तो चंद्रगुप्त मौर्य को जहर का दूध पिलाकर मारने का प्रयत्न किया गया था परंतु गलती से वह दूध दुर्धरा ने पी लिया था जिससे उनकी और उनके गर्भ में पल रहे बच्चे की जान को खतरा उत्पन्न हो गया तब आचार्य चाणक्य ने हाथ से उनके पेट को चीरकर बिंदुसार को बाहर निकाला 

चंद्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी 

चंद्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी का नाम हेलेना था दुर्धरा की मृत्यु के बाद चंद्रगुप्त ने दूसरी शादी नहीं की और उस समय उनकी उम्र लगभग 40 वर्ष हो चुकी थी हेलेना सेलेकस निकेटर की बेटी थी जिसे चंद्रगुप्त मौर्य ने युद्ध में हराया था युद्ध के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने हेलेना से शादी की थी चंद्रगुप्त मौर्य और हेलेना का विवाह दो राज्यों के बीच एक रणनीतिक गठजोड़ था, परंतु कुछ कहानियां ऐसी भी है जो यह दर्शाती है कि हेलेना और चंद्रगुप्त का विवाह प्रेम विवाह था हेलेना चंद्रगुप्त के युद्ध कौशल पर मोहित हो गई थी और उन दोनों ने विवाह कर लिया हेलेना और चंद्रगुप्त का विवाह लंबे समय तक नहीं चला क्योंकि चंद्रगुप्त मौर्य ने विवाह के कुछ समय बाद ही जैन धर्म को अपना लिया और हेलेना से शादी के 4-5 साल बाद ही चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हो गई | चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण 

चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब की धरती को विदेशी दासता से मुक्त कराने के बाद देश को नंद शासकों के अत्याचारों से मुक्त कराने का संकल्प लिया था उस समय पंजाब की धरती पर विदेशी शासकों का शासन था जिसको चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी कला कौशल एवं युद्धों से उखाड़ फेंका था इसके बाद सबसे पहले चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध साम्राज्य के केंद्रीय भाग पर आक्रमण किया परंतु उन्हें इस युद्ध में हारना पड़ा इसके बाद उन्होंने सीमांत प्रदेशों को अपना निशाना बनाया और सीमांत प्रदेशों को अपने विजय रथ को आरंभ किया तथा रास्ते में आने वाले सभी जनपदों पर चंद्रगुप्त ने विजय प्राप्त की और अपने साम्राज्य का प्रभुत्व स्थापित किया चंद्रगुप्त ने अपनी विजय सेना के साथ मगध साम्राज्य की सीमा में प्रवेश करके पाटिल पुत्र पर घेर डाला

उस समय पाटलिपुत्र पर नंद वंश के राजा घनानंद का साम्राज्य था और वहां का शासन कार्य घनानंद ही संचालित करता था चंद्रगुप्त  कालांतर में घनानंद को पराजित किया और उसे मार डाला. नंद के विरुद्ध युद्ध में चंद्रगुप्त को सैनिक तत्वों की अपेक्षा नैतिक तत्वों से कहीं अधिक सहायता प्राप्त हुई चाणक्य ने इस कार्य में चंद्रगुप्त की बहुत  सहायता की थी क्योंकि घनानंद ने ही चाणक्य को अपने  राज्य से बाहर निकाला था जिस समय नंद सेनाओं से चंद्रगुप्त का युद्ध हो रहा था उस समय नंद वंश का सेनापति भद्रसाल हुआ करता था इस युद्ध में बहुत ही भीषण रक्तपात हुआ मुद्राराक्षस ग्रंथ से यह स्पष्ट होता है कि नंद शासक की हत्या कर दी गई थी और 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण हुआ था 

चंद्रगुप्त का सेल्यूकस के साथ युद्ध 

जब सिकंदर का राज्य अपनी चरम सीमा पर था तब सिकंदर के साम्राज्य के पूर्वी भाग का स्वामी सेल्यूकस हुआ करता था सेल्यूकस ने सिकंदर के द्वारा जीते गए भारत के भागों को पुणे विजिट करने के लिए 305 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया सिकंदर ने भारत के कई राज्यों पर अपना अधिकार किया था और सेल्यूकस भी सिकंदर की तरह ही एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था जिसे भारत पर अधिकार करने के लिए फिर से आक्रमण किया था परंतु इस बार सेल्यूकस पूरी तरह से भारतीय साम्राज्य के शासक द्वारा पराजित हुआ इस युद्ध में हार के बाद विवश होकर सेल्यूकस ने संधि कर ली इस संधि में चंद्रगुप्त ने उपहार स्वरूप 500 हाथी उपहार में दिए परंतु इस संधि में जो शर्ते रखी गई थी वह सेल्यूकस के लिए अप्रिय थी क्योंकि सेल्यूकस को अपने साम्राज्य का महत्वपूर्ण भाग चंद्रगुप्त मौर्य को देना पड़ा था, गांधार और काबुल का इलाका अब चंद्रगुप्त के अधीन हो गया था और इसके साथ ही मौर्य साम्राज्य की सीमा अब ईरान की सीमाओं तक बढ़ गई थी 

चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां 

चंद्रगुप्त मौर्य एक बुद्धिमान, कुशल योद्धा एवं परमवीर शासक था उनका बचपन बहुत ही संघर्ष में था वह अपने पराक्रम,  परिश्रम और निपुणता के कारण भारत के इतिहास का प्रथम सम्राट एवं प्राचीन भारत का एक प्रमुख सम्राट बने थे वह प्रथम भारतीय साम्राज्य हिंदमाता एवं एक कुशल प्रशासक के रूप में इतिहास में प्रसिद्ध है उन्होंने अपनी प्रतिभा और योग्यता से सम्राट का पद प्राप्त किया था चंद्रगुप्त के समय में भारतीय साम्राज्य का विस्तार बहुत ही अधिक हुआ और उसने लगभग समस्त भारत पर अपना शासन स्थापित किया चंद्रगुप्त मौर्य के समय राज्य की सीमाएं ईरान तक फैली हुई थी 

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन लगभग 24 वर्षों तक रहा वह एक महान विजेता थे चंद्रगुप्त मौर्य एक साहित्य प्रेमी भी थे चंद्रगुप्त के समय पश्चिम भारत पर सिकंदर का शासन कार्य हुआ करता था सिकंदर एक विदेशी था और भारत की धरती पर विदेशी आधिपत्य को देखकर चंद्रगुप्त मौर्य बहुत ही दुखी हुए थे चाणक्य विदेशी आधिपत्य के घोर विरोधी थे चंद्रगुप्त मौर्य का प्रथम कर्तव्य यह था कि वह विदेशी शासन से भारतीय धरती को मुक्त कराएं उनकी योजना यह थी कि सर्वप्रथम भारत में फैले यूनानी शासकों का सफाया कर दें और उसने इस कार्य को करने के लिए  निक्कानोर और फिलिप की हत्या भी करवा दी थी जब सिकंदर को इस बात का पता चला तो वह बहुत ही क्रोधित हुआ परंतु चंद्रगुप्त को हराने में असमर्थ था चंद्रगुप्त ने यूनानीयों को भारत से निकालने में सफलता प्राप्त की इसी कारण से उन्हें मुक्तिदाता भी कहा जाता है 

चंद्रगुप्त मौर्य को मुक्तिदाता का दर्जा

जब 323 ईसा पूर्व मे सिकंदर की मृत्यु हो गई तब चंद्रगुप्त की योजनाओं को और अधिक बल मिल गया चंद्रगुप्त मौर्य को मुक्तिदाता इसलिए कहा जाता है उन्होंने मगध की जनता को नंदू के अत्याचारी शासन एवं शासकों से मुक्ति दिलाई थी 

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 

चंद्रगुप्त मौर्य वृद्धावस्था में अपना राजपाट छोड़कर जैन साधु भद्रबाहु का शिष्य बन गए थे चंद्रगुप्त मौर्य की 297 ईसा पूर्व में मृत्यु हो गई थी चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी असीम सेना शक्ति एवं युद्ध कौशल के बल पर लगभग समस्त भारत का एकीकरण कर दिया था चंद्रगुप्त का साम्राज्य व्यास नदी से लेकर सिंधु नदी तक के प्रदेश पर हो गया था चंद्रगुप्त मौर्य के समय प्रजा और शासक के बीच पिता-पुत्र का संबंध था 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button