History

जीजा बाई का इतिहास

जीजा बाई का इतिहास,जीजाबाई की संताने ,सिहागढ़ को जीतने की योजना,माता जीजाबाई की प्रतिज्ञा ,जीजा बाई की मृत्यु 

जीजा बाई का इतिहास

जीजा बाई का जन्म 

जीजाबाई शाहजी भोंसले, मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की मां थी वह सिंदखेड राजा के लखूजी राव जाधव की एक बेटी थी मां जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को महाराष्ट्र के डेरु गांव के महालसाबाई जाधव के यहां हुआ था जीजाबाई को “राजमाता” के नाम से भी जाना जाता था उस समय की परंपराओं के अनुसार अल्प आयु में “शाहजी राजे भोसले” से विवाह हो गया जो निजामशाही के दरबार में सैन्य दल के सेनापति थे

जीजाबाई ने 8 बच्चों को जन्म दिया जिनमें से 6 बेटियां और दो बेटे थे और उनमें से ही एक शिवाजी महाराज थे जीजाबाई ने इतिहास में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जो मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिए सहायक साबित हुए जीजाबाई एक चतुर और बुद्धिमान महिला थी

शिवाजी को प्रेरणादायक कहानियां सुना कर प्रेरित करती थी अपनी माता से ही प्रेरित होकर शिवाजी ने स्वराज्य हासिल करने का निर्णय लिया था उस समय केवल उनकी आयु 17 वर्ष की थी शिवाजी से महान शासक का निर्माण करने में जीजाबाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा था जीजा बाई का इतिहास 

जीजाबाई की संताने 

जीजाबाई तथा शाहजी भोंसले के 2 पुत्र थे संभाजी भोसले तथा छत्रपति शिवाजी भोसले संभाजी भोसले उनके बड़े बेटे थे जिनका जन्म 1630 के आसपास हुआ था शिवाजी भोसले उनके छोटे बेटे थे जिनका जन्म 1633 ईस्वी को हुआ था भोंसले परिवार लाल महल में रहता था जो उनका आवास स्थान था शाहजी भोंसले बीजापुर के शासक आदिलशाह के दरबार में एक जागीरदार थे

जिसकी वजह से वह लाल महल को छोड़कर के बीजापुर में जाकर रहने लगे वह अपने बड़े बेटे संभाजी को भी वही लेकर चले गए  कहा जाता है कि 1654 में आदिलशाह के सेनापति अफजल खान ने संभाजी भोसले की हत्या कर दी थी जब 1657 में शिवाजी को पुत्र की प्राप्ति हुई तब उन्होंने अपने बेटे का नाम अपने बड़े भाई की याद में संभाजी रखा था जीजा बाई का इतिहास

सिहागढ़ को जीतने की योजना 

केवल 16 वर्ष की आयु में ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने साम्राज्य स्थापित करने की प्रतिज्ञा की थी गिने-चुने मावलों में धर्म प्रेम की जागृति कर उन्हें लड़ना सिखाया और स्वराज की संकल्पना से उन्हें अवगत कराया था हिंदू स्वराज्य के लिए गिने-चुने मावलों ने प्राणों की चिंता किए बिना अपने आप को झोंक दिया पांच मुसलमानी सल्तनत के विरोध में लड़ते-लड़ते 1-1 भू प्रदेश को जीत लिया था

तहसील भोरके सहयाद्री पर्वत के एक शिखर पर विराजित रायरेश्वर के स्वयंभू शिवालय में छत्रपति शिवाजी महाराज ने 26 अप्रैल 1635 में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की शपथ ली थी12 मावल प्रांतों से सभी लोग भोरके पहाड़ों से परिचित थे इन सिहसमान महा पराक्रमी मावलों को साथ लेकर शिवाजी महाराज ने स्वयंभू रायरेश्वर के समक्ष स्वराज की प्रतिज्ञा ली थी जून 1665 के पुरंदर समझौते के अनुसार शिवाजी महाराज को मुगलों के हाथों सिंहगढ़ समेत 23 किले सौंपने पड़े थे

इस समझौते ने मराठों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी परंतु इस समझौते से शिवाजी की माता जीजाबाई को बहुत ही पीड़ा हुई थी शिवाजी महाराज अपनी माता जी को बहुत ही चाहते थे किंतु उनकी इच्छा पूरी नहीं कर सके क्योंकि सिंह गढ़ जीतना असंभव था राजपूत, अरब एवं पठान उसकी रक्षा कर रहे थे जीजा बाई का इतिहास

माता जीजाबाई की प्रतिज्ञा 

शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक सिंहगढ़ का किला वापस नहीं मिल जाता तब तक वह अन्न जल ग्रहण नहीं करेगी शिवाजी महाराज के सरदार उनकी बात से सहमत है किंतु जीजाबाई उनकी बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं थी कहते हैं एक बार तो औरत कोई बात ठान लेती है तो उसमें चमत्कारी शक्ति आ जाती ,है तथा शिवाजी महाराज की माताजी जीजाबाई इसका उत्तम उदाहरण है

एक सवेरा जब वह प्रतापगढ़ की खिड़की से देख रही थी उस समय कुछ दूरी पर उन्हें सिंहगढ़ दिखाई दिया यह किला मुगलों के आधिपत्य में है,यह सोच कर उन्हें बहुत क्रोध आया इसके बाद उन्होंने तुरंत एक घुड़सवार को शिवाजी महाराज के पास रायगढ़ भेजा तथा उसके साथ संदेशा भेजा कि वे तुरंत प्रतापगढ़ उपस्थित हो

शिवाजी महाराज बुलाने का कारण जाने बिना, अपने माता के संदेशानुसार तुरंत उपस्थित हुए जिजाबाई उनसे क्या चाहती थी यह जानते ही उनका दिल बैठ गया उन्होंने जी जान से जीजाबाई को समझाने का प्रयास किया पर जोर प्रयास के पश्चात भी सिंह गढ़ जीतना असंभव था इसके बाद शिवाजी महाराज ने कहा उसे जीतने के लिए बहुत से जन गए, किंतु वापस एक भी नहीं आया ‘आम के बीच बहुत बोय किंतु एक भी पेड़ नहीं उगा’ अपनी माता के दुखी होने के डर से उन्होंने एक व्यक्ति का नाम सोचा जिस पर यह भयंकर उत्तरदायित्व सौंपा जा सकता था उसका नाम था “तानाजी मालुसरे” इसके अतिरिक्त शिवाजी महाराज किसी और का नाम सोच भी नहीं सकते थे

जीजा बाई की मृत्यु 

17 जून 1674 को जीजा बाई का निधन हो गया था जीजाबाई एक तेजस्वी महिला थी जीवन भर पग-पग पर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने धैर्य नहीं खोया इन्होंने शिवाजी को महान वीर योद्धा और स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र का छत्रपति बनाने के लिए अपनी सारी शक्ति, योग्यता और बुद्धिमता लगा दी शिवाजी को बचपन से बहादुरों और सुर वीरों की कहानियां सुनाया करती भगवत गीता के उपदेश रामायण कथाएं सुनाकर इन्होंने शिवाजी के बाल हृदय पर स्वाधीनता की लो प्रज्वलित कर दी

उनके दिए हुए इन संस्कारों के कारण आगे चलकर वह बालक हिंदू समाज का संरक्षक और गौरव बना और दक्षिण भारत में हिंदू साम्राज्य की स्थापना की इसके बाद शिवाजी ने स्वतंत्र शासक की तरह अपने नाम का सिक्का चलाया छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से उन्होंने ख्याति प्राप्त की यह सब राजमाता जीजाबाई के कारण ही संभव हो पाया था

जीजा बाई का इतिहास

 

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