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वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का इतिहास हिंदी

वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का इतिहास और जीवन परिचय हिंदी

 

वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का जन्म

आज से 400 साल पहले दिल्ली की सत्ता पर मुगलों का परचम लहरा रहा था उस समय वहां का शासक औरंगजेब था जो कि पूरे भारत पर अपना शासन करना चाहता था औरंगजेब के आदेश से हिंदू मंदिरों गुरुद्वारों को नष्ट कर दिया गया था उस समय हर तरफ  मृत्यु के नगाड़े बज रहे थे इसके बाद बुंदेला के शासक चंपक राय ने युद्ध लड़ा इस युद्ध में औरंगजेब ने चंपत राय की सारी जायदाद और खजाना जप्त कर लिया था

 वीर केसरी छत्रसाल जी का जन्म सन 4 मई 1649 को  लिधौरा जिला टीकमगढ़ के पास मोर  पहाड़ी में हुआ था  इनकी माता जी का नाम लाल कुवरी था  इनके पिता जी का नाम चंपत राय था छत्रसाल जी का  बचपन घास की रोटियां  खा कर बीता था कई  रात तो वह भूखे पेट जमीन पर सो कर बिताते थे इसके बाद इनके पिताजी ने मुगलों से डर के कारण अपने पुत्र  छत्रसाल को अपने गुरु नरहरिदास के पास  वृंदावन में भेज दिया था उन्हें डर था कि कहीं मुगल उनके पुत्र को मार ना दे | वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का इतिहास हिंदी

चंपत राय और मुगलों के बीच युद्ध 

एक बार फिर से चंपत राय और मुगलों के बीच  भयानक युद्ध हुआ  इस युद्ध में चंपत राय ने बहुत ही साहस और शौर्य दिखाया था इस युद्ध में चंपत राय की पत्नी माता लाल कुंवरी ने भी मुगलो को धूल चटा दी थी इन्होंने युद्ध में इतना कहर बरसाया की ऐसा लगा जैसे भवानी  मां युद्ध कर रही हो इसके बाद मुगल सेना चंपत राय और उनकी पत्नी को बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ने लगी तो चंपत राय और उनकी पत्नी ने खुद ने अपने शरीर में खंजर मार कर आतम बलिदान कर दिया था वह मुगलों के हाथों मरना नहीं चाहते थे इस युद्ध में मुगल सेना जीत गई थी 

वीर छत्रसाल द्वारा बुंदेलखंड को आजाद करवाना

जब छत्रसाल जी 12 वर्ष के थे तब इन्हें गुरुकुल में अपने माता पिता की मौत का समाचार मिला जिसे सुनकर  यह बहुत अधिक क्रोधित हुए और इन्होंने अपने मन में निश्चय किया कि मैं अपने माता पिता की मौत का बदला मुगलों से लेकर रहूंगा इसके बाद इन्होंने बुंदेलखंड की ओर जाना शुरू कर दिया दर्द और तकलीफों को सहते हुए जब यह बालक बड़ा हुआ तो इसने दिल्ली की मुगलिया सल्तनत की ईंट से ईट बजा दी 52 युद्धों के विजेता बुंदेल के शिवाजी के नाम से प्रसिद्ध वीर छत्रसाल बुंदेला ने ना सिर्फ संपूर्ण बुंदेलखंड को आजाद करवाया बल्कि राजपूताना मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों पर अपनी विजय का परचम लहराया था छत्रसाल भारत के मध्य युग के एक महान राजपूत क्षेत्रीय प्रतापी भी योद्धा थे  जिन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को युद्ध में हराकर बुंदेलखंड में अपना राज्य स्थापित किया और ‘ महाराजा” की पदवी प्राप्त की थी | वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का इतिहास हिंदी

वीर छत्रसाल जी का विवाह

जब छत्रसाल जी 15 वर्ष के हुए तो इनके मामा जी ने इनका विवाह पवार  वंश की राजकुमारी देव कुंवरी से करवा दिया इसके बाद छत्रसाल जी जयपुर चले गए वहां यह जयसिंह की सेना में भर्ती हो गए और इनका सामना तोप और बंदूकों से हुआ राजा जयसिंह दिल्ली की सल्तनत के लिए काम करते थे सन 1764 को औरंगजेब ने जय सिंह को दक्षिण विजय का कार्य सौंपा था इसके बाद 17 साल को एक पहला मौका मिला था कि उनकी एक बड़ी सी सेना के साथ टक्कर होगी 

बीजापुर की सल्तनत के साथ युद्ध

सन 1665 को बीजापुर की सल्तनत के साथ युद्ध हुआ इस युद्ध में  छत्रसाल को अपनी वीरता दिखाने का अवसर प्रदान हो गया था और इस बुंदेला छत्रसाल ने इस युद्ध में अपना शौर्य दिखाया उनकी वीरता और शौर्य को देखकर जयसिंह आश्चर्यचकित हो गए थे इसके बाद छत्रसाल ने  बीजापुर की सल्तनत पर अपना परचम लहराया इसके बाद इस जीत का सेहरा जयसिंह छत्रसाल को  पहनाना चाहते थे परंतु औरंगजेब अपने सेनापति को यह ताज पहनाना चाहते थे औरंगजेब ने कहा कि यदि मेरा सेनापति ना होता तो तुम सारे राजपूत मारे जाते मुगलों की कूटनीति देखकर छत्रसाल ने जयसिंह की सेना को छोड़कर जंगलों में चले गए | वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का इतिहास हिंदी

छत्रसाल की वीर शिवाजी से मुलाकात 

सन 1630 में छत्रपति शिवाजी की  हिंदू धरा पर धमक कायम हो चुकी थी उन्होंने 1674 मै मुगल साम्राज्य से टक्कर लेने के लिए एक विशाल हिंदू साम्राज्य खड़ा कर दिया वह एक के बाद एक मुगल किलों को जीतते हुए जा रहे थे औरंगजेब की विशाल सेना वीर शिवाजी का मुकाबला नहीं कर पा रही थी इसके बाद  छत्रसाल वीर शिवाजी से मिलने के लिए दिल्ली से पुणे की ओर निकले परंतु उस समय वीर शिवाजी से मिलना इतना आसान नहीं था वीर शिवाजी ने अपने सीमा के चारों ओर कड़ी पाबंदी लगा रखी थी वह मराठा साम्राज्य के सरदार थे इसके बाद बहुत मुश्किलों को पार करते हुए छत्रसाल जी वीर शिवाजी राजे भोसले के पास जा पहुंचे | वीर केसरी छत्रसाल बुंदेला का इतिहास हिंदी

छत्रसाल द्वारा गुरु मंत्र की मांग

सन 1668 में छत्रसाल ने स्वराज के गुरु मंत्र की मांग की थी छत्रसाल ने महाराज वीर शिवाजी से स्वराज का गुरु मंत्र मांगा महाराज ने छत्रसाल से कहा महाराज छत्रसाल जोत मिलाते चलो आप तमाम सुवर्ण हैं उसे कभी डरना मत मैं तुमसे दूर नहीं हूं जहां जरूरत पड़ेगी मेरी सेनाएं वहां खड़ी मिलेगी छत्रपति शिवाजी महाराज ने छत्रसाल को अपनी प्रिय भवानी तलवार देते हुए कहा कि तलवार से हमने कई किलो पर भगवा परचम लहराया अब तलवार तुम रक्त पान करो छत्रसाल1670 में शिवाजी महाराज से गुरु मंत्र लेकर बुंदेलखंड लौट आए परंतु छत्रसाल के पास ना  सेना थी ना ही धन छत्रसाल के भाई बंधु भी दिल्ली की सत्ता से टकराने को तैयार नहीं थे और तो और बुंदेलखंड का हर हिंदू राज्य मुगलों के अधीन एक मनसबदार की तरह काम कर रहा था

कहीं से भी सहयोग ना मिलने पर अंत में उन्होंने अपने गहने बेचकर पांच घुड़सवार और 25 सैनिकों की एक सेना तैयार की छत्रसाल ने सबसे पहला हमला अपने माता-पिता के साथ गद्दारी करने वाले सेहरा के धनतेरह के राज्य पर किया इस युद्ध में छत्रसाल की 1728 जीत हुई जीत के साथ ही उन्हें बहुत बड़ा खजाना भी हाथ लगा इस खजाने से छत्रसाल ने अपनी सेना का विस्तार किया इसके बाद छत्रसाल ने 12 मुगल ठिकानों पर आक्रमण करके अपनी जीत का परचम लहराया और मुगलों की जागीरो को अपने अधिकार में कर लिया 

छत्रसाल द्वारा ग्वालियर पर विजय

उस समय औरंगजेब के सामने एक बहुत बड़ा हिंदू साम्राज्य खड़ा हो रहा था इसके बाद छत्रसाल ने अपनी विशाल सेना के साथ ग्वालियर पर चढ़ाई की ग्वालियर में मुनव्वर खान की सेना के साथ भयंकर युद्ध हुआ और ग्वालियर को अपने अधीन में कर लिया इसके बाद नरवर पर भी विजय प्राप्त करके छत्रसाल ने अपने अधीन कर लिया ग्वालियर और नरवर के किले पर विजय प्राप्त करने पर छत्रसाल को सवा करोड रुपए मिले ग्वालियर की लूट के बाद छत्रसाल औरंगजेब को निशाने पर साधने लगे 

इसके बाद औरंगजेब ने 1671 मैं अपने 30000 सैनिकों को छत्र साल का सिर काट कर दिल्ली लाने के लिए भेजा था इसके बाद  छत्रसाल की बुंदेली सेना ने मुगलों के 30000 सैनिकों को तहस-नहस कर डाला उनको मार दिया था छत्रसाल ने 1671 से 1680 तक ग्वालियर से लेकर चित्रकूट तक अपना प्रभुत्व जमा लिया था 

छत्रसाल जी का राज्य अभिषेक

 छत्रसाल जी का विक्रम संवत 1744  को गुरु प्राण नाथद्वारा राज्य अभिषेक किया गया औरंगजेब की मृत्यु तक 1707 तक बुंदेला छत्रसाल ने संपूर्ण बुंदेलखंड को आजाद करवा दिया था बुंदेलखंड की धरती से मुगलों का नामोनिशान मिटा दिया था इसके बाद औरंगजेब के पुत्र ने बुंदेलखंड पर धावा बोल दिया था तब तक बुंदेला छत्रसाल जी 80 वर्ष के हो चुके थे उनके हाथों में अब युद्ध करने की ताकत नहीं रही थी इसलिए उन्होंने मराठा वीर शिवाजी को बाजीराव के हाथों पत्र पहुंचाया और उसमें लिखा कि मेरा राज्य और धन सब दांव पर लग चुका है और अब मैं युद्ध करने की हालत में भी नहीं हूं इसके बाद बाजीराव अपनी विशाल सेना लेकर मुगलों से युद्ध करने के लिए आया मुगलों की विशाल सेना को देखकर औरंगजेब का बेटा भाग निकला इस युद्ध में विजय के बाद छत्रसाल ने  बाजीराव पेशवा को  अपना तीसरा बेटा मानते हुए अपनी जागीर का तीसरा हिस्सा बाजीराव के नाम कर दिया था 

बुंदेला छत्रसाल की मृत्यु

20 दिसंबर 1731 को मऊसहानिया में  बुंदेला छत्रसाल की मृत्यु हो गई थी उस समय उनकी आयु 81 वर्ष के थे वीर छत्रसाल बुंदेलखंड 8 करोड़ 8 लाख रुपए आमदनी का था छत्रसाल को योगीराज प्राणनाथ का विशेष स्नेह प्राप्त हुआ था

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