History

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास, तिरुपति बालाजी की प्रतिमा, माता लक्ष्मी की आकृति, तिरुपति बालाजी के दर्शन

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास 

तिरुपति बालाजी मंदिर वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से विख्यात है भारत के सबसे चमत्कारी और रहस्यमई मंदिरों में से एक है तिरुपति बालाजी भगवान विष्णु का ही एक रूप है भगवान विष्णु को अनेक रूपों में पूजा जाता है कहीं राम के रूप में, कहीं कृष्ण के में  तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में तिरुपत की पहाड़ियों पर स्थित ऐतिहासिक मंदिर है समुंदर तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित श्री वेंकटेश्वर मंदिर दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आकर्षण है इस मंदिर को देश का सबसे अमीर मंदिर होने का दर्जा प्राप्त है यह एक ऐसा मंदिर है जहां सबसे अधिक चढ़ावा आता है जाता है ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं बालाजी उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं मनोकामना पूरी होने पर भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बालों का दान करते हैं कई शताब्दियों पहले बना मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तु कला और शिल्प कला का अद्भुत उदाहरण है | तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास |

तिरुपति बालाजी की प्रतिमा 

मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते हैं तो ऐसा लगता है कि भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा गर्भग्रह के मध्य में स्थित है परंतु जैसे ही गर्भ ग्रह से बाहर आएंगे तो यह प्रतिमा दाहिनी और दिखाई देती है ऐसा लगता है कि यह प्रतिमा दाई तरफ स्थित है भगवान वेंकटेश्वर को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्रों से सजाया जाता है नीचे धोती और ऊपर  साड़ी डाली जाती है माना जाता कि बालाजी में ही माता लक्ष्मी का रूप समाहित है बालाजी की प्रतिमा एक विशेष पत्थर से बनी है इसे देखकर ऐसा लगता है कि यहां पर भगवान खुद विराजमान है यहां पर मंदिर के वातावरण को काफी ठंडा रखा जाता है | तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास |

 माता लक्ष्मी की आकृति 

इस मंदिर में प्रत्येक गुरुवार को बालाजी को स्नान करा कर उन पर चंदन का लेप लगाया जाता है और जब यह हटाया जाता है तो उनके हृदय में माता लक्ष्मी की प्रतिमा दिखाई देती है इस मंदिर में एक ऐसा दीया है जो कि हमेशा जलता रहता है इस दिए में न तो कोई घी डालता है और ना ही कोई तेल डालता है इसके बाद भी यह सदैव जलता रहता है जब बालाजी की प्रतिमा को साफ किया जाता है तो उसमें परचाई कपूर का प्रयोग किया जाता है ऐसा माना जाता है कि इस कपूर को किसी भी दीवार पर घीसाने से वह दीवार फट जाती है परंतु बालाजी की मूर्ति पर इसका प्रयोग करने पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं होता इस मंदिर में जो बालाजी की प्रतिमा है उस पर जो बाल है वह हमेशा मुलायम रहते हैं वह कभी भी रूखे नहीं होते | तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास |

तिरुपति बालाजी के दर्शन 

इस मंदिर में जो बालाजी की मूर्ति है यदि उसे नजदीक से सुने तो उसमें से समुंदर की लहरों की आवाज सुनाई देती है  यहां पर बालाजी की मूर्ति स्वयं ही प्रकट हुई थी तिरुपति बालाजी के नेत्र हमेशा खुले रहते हैं इनमें काफी तेज है इसलिए पंच कपूर से आंखों को हमेशा ढक कर रखा जाता है सिर्फ हर गुरुवार को नेत्र दर्शन कराए जाते हैं यहां पर भगवान बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ निवास करते हैं इस मंदिर के मुख्य द्वार पर एक छड़ी है जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि बचपन से इसी छड़ी से बालाजी की पिटाई की गई थी जिसके कारण उनकी ठोडि पर पर चोट लग गई थी आज भी वह निशान उनकी प्रतिमा में देखा जा सकता है और हर शुक्रवार को इनकी लगी हुई चोट पर चंदन का लेप लगाया जाता है ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बालाजी का घाव भर जाए बालाजी का गांव 

भगवान बालाजी के मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है जहां पर बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं  बालाजी को जो भी चढ़ावा चढ़ाया जाता है वह सभी इसी गांव से आता है जैसे- फल, फूल, दही, घी आदि  इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती | तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास |

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