History

विजयनगर साम्राज्य का इतिहास

विजयनगर साम्राज्य  का इतिहास

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ईस्वी में हुई थी यानी कि 14वीं शताब्दी में हुई थी विजयनगर की स्थापना के समय दिल्ली सल्तनत में मोहम्मद बिन तुगलक वंश का शासन था  विजयनगर का “शाब्दिक अर्थ है”- जीत का  शहर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी इनके पिता जी का नाम संगम था इसी कारण से इनका जो  वंश चला वह संगम के नाम से चला था विजयनगर साम्राज्य की स्थापना तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर हुई थी | विजयनगर साम्राज्य का इतिहास |

विजयनगर साम्राज्य पर किया गया शासन 

विजयनगर साम्राज्य पर चार राजवंशों ने शासन किया संगम वंश, सुलुव वंश, तुलुव वंश और अरविंडू वंश इनमें से संगम वंश ने सबसे लंबे समय तक शासन किया था इसके बाद सुलुव वंश का शासन 1485 से 1505 ईसवी तक काल मात्र केवल  20 वर्ष था तुलुव वंश का शासक कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक हुए थे संगम वंश का शासक हरिहर प्रथम हुआ था और दूसरा शासक बुक्का प्रथम हुआ था 1347 में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई थी

बहमनी साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कुछ समय के अंतराल में दक्षिण भारत में हुई थी बहमनी साम्राज्य की स्थापना के साथ ही दोनों साम्राज्य के मध्य संघर्ष आरंभ हो गया था क्योंकि दोनों राज्यों की सीमाएं एक दूसरे के साथ जुड़ी  हुई थी इस कारण से दोनों के बीच में झगड़ा होता रहता था विजयनगर और बहमनी साम्राज्य के बीच में हुए संघर्ष का कारण “रायचूर का दोआब” था

यह दोआब क्षेत्र कृष्णा नदी और तुंगभद्रा नदी के बीच का क्षेत्र था यह क्षेत्र काफी उपजाऊ था बुक्का प्रथम के समय कृष्णा नदी को विजयनगर और बहमनी साम्राज्य के मध्य सीमा स्वीकार किया गया था हरिहर और बुक्का प्रथम ने राजा और महाराजा की उपाधि धारण नहीं की थी | विजयनगर साम्राज्य का इतिहास |

महाराजाधिराज की उपाधि 

सबसे पहले “हरिहर द्वितीय ने महाराजाधिराज” की उपाधि धारण की थी देवराय प्रथम को बहमनी साम्राज्य के “सुल्तान फिरोज बहमन” से युद्ध करना पड़ा था फिरोज शाह  मनसा से युद्ध में हार जाने के बाद देवराय प्रथम ने अपनी पुत्री का विवाह फिरोज शाह से करवा दिया था इस विवाह को विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में “सोनार की बेटी का विवाह ” कहा जाता है 

देवराय द्वितीय ने इमाडी नरसिंह की उपाधि धारण की थी देवराय द्वितीय के दरबार में फारस के शासक शाहरुख का राजदूत अब्दुल रज्जाक आया था देवराज द्वितीय नहीं मुसलमानों को अपनी सेना में भर्ती किया था देवराज द्वितीय ने मुसलमानों को मस्जिद बनाने की अनुमति दी थी देवराय प्रथम ने राज्य अभिषेक के समय कुरान को साथ में रखा था कुरान हिंदू मुस्लिम के बीच में एकता का संबंध का प्रतीक था  देवराज द्वितीय को गजबेटकर कहा गया यानी कि हाथियों का शिकारी देवराय द्वितीय का उत्तराधिकारी मलिकार्जुन को प्रोढ़देवराय कहा गया | विजयनगर साम्राज्य का इतिहास |

संगम वंश का अंतिम शासक 

विरुपाक्ष द्वितीय संगम वंश का अंतिम शासक हुआ था चंद्र गिरी के गवर्नर सालुव नरसिंह  के सेनानायक  नरसा नायक ने राज महल पर कब्जा कर सालुव नरसिंह को गद्दी पर बैठने के लिए आमंत्रित किया इस घटना को विजय नगर साम्राज्य का “प्रथम बला पहार” कहा जाता है सालुव नरसिंह ने “ सुलुव वंश ” की स्थापना की थी  

इमाडी नरसिंह की हत्या 

इमाडी नरसिंह की हत्या नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने कर दी और तुलुव वंश की स्थापना की इस घटना को विजयनगर साम्राज्य का “ द्वितीय बला पहार” का जाता है नरसिंह के बाद कृष्ण देव राय तुलुव वंश का शासक बना था कृष्णदेव राय का शासन 1509 से लेकर 1529 तक रहा था 

कृष्णदेव राय बाबर का समकालीन था कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के शासक ही नहीं बल्कि भारत के महानतम शासकों में से एक थे कृष्णदेव राय के शासन काल के समय में विजयनगर ऐश्वर्य एवं शक्ति के दृष्टिकोण से अपने चरम पर था इन्होंने उड़ीसा के गजपति शासक के प्रताप रुद्र को युद्ध में चार बार हराया था इसके बाद इन्होंने पुर्तगाली गवर्नर अल्बूकर्क से मित्रता की थी कृष्णदेव राय “ तेलुगु साहित्य के महान विद्वान ” थे

इन्होंने तेलुगु भाषा में अमुक्तमाल्यद नामक ग्रंथ की रचना की थी इन्होंने अपने दरबार में अनेक विद्वानों साहित्यकारों को संरक्षण प्रदान किया था इन के दरबार में 8  प्रसिद्ध तेलुगु के कवि अष्ट दिग्गज के नाम से जाने जाते थे तेनाली रामकृष्ण अष्ट दिग्गज कवियों में से सर्व प्रमुख थे | विजयनगर साम्राज्य का इतिहास |

कृष्ण देव राय को दी गई उपाधि 

कृष्ण देव राय को अभिनव भोज और आंध्र भोज की उपाधि दी गई थी 1565 में विजयनगर साम्राज्य और बहमनी साम्राज्य के बीच में तालीकोटा का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था उस समय विजयनगर साम्राज्य का शासक सदाशिव  था और विजयनगर साम्राज्य का सेनापति रामराय था इसके बाद विजयनगर साम्राज्य के विरुद्ध गोलकुंडा, अहमदनगर, बीजापुर और बीदर ने संयुक्त रूप से संगठन स्थापित किया इस संयुक्त सेना का नेतृत्व बीजापुर के सुल्तान अली आदिल शाह ने किया था

तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर पूरी तरह से बर्बाद हो गया था इसके बाद सेनापति राम राय मारा गया और राजा  सदा शिव ने तिरुमल के सहयोग से  पेनुकोंडा को राजस्थानी बनाकर शासन करना शुरू कर दिया था तिरुमल ने 1570 में  सदाशिव की हत्या कर दी थी इसके बाद तिरुमल ने अरविंडू वंश की स्थापना की थी अरविंडू वंश का शासन 1652 ईस्वी तक रहा था इसके बाद विजयनगर साम्राज्य का पतन हो जाता है| विजयनगर साम्राज्य का इतिहास |

विजयनगर साम्राज्य की विशेषता

 विजयनगर में राजा को राय कहा जाता था विजयनगर साम्राज्य में मंत्रियों का पद अनुवांशिक होता था मंत्री परिषद के अध्यक्ष को सभा नायक कहा जाता था विजयनगर छ: प्रांतों में बंटा हुआ था जिन्हें प्रांत राज्य  या मंडल कहा जाता था| विजयनगर साम्राज्य का इतिहास |

 

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