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सम्राट विक्रमादित्य का इतिहास हिंदी

सम्राट विक्रमादित्य का इतिहास और जीवन परिचय हिंदी

राजा विक्रमादित्य का जन्म

सम्राट विक्रमादित्य का जन्म कलिकाल के 3000 वर्ष बीत जाने के बाद 102 वर्ष ईसा पूर्व में जन्म हुआ था इन्होंने 100 वर्ष तक राज्य किया | गीता प्रेस गोरखपुर भविष्य पुराण पृष्ठ 245 विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राज सिंहासन पर बैठे विक्रमादित्य अपने ज्ञान वीरता और उदार शीलता के लिए प्रसिद्ध थे इनके दरबार में नवरत्न रहते थे यह बहुत ही पराक्रमी थे इन्होंने शकों को परास्त किया था

राजा विक्रमादित्य को सम्राट चक्रवर्ती भी कहा जाता था चक्रवर्ती सम्राट उसे कहा जाता है जिसका पूरे भारत पर राज हो ऋषभ के पुत्र राजा भरत पहले चक्रवर्ती सम्राट थे जिसके कारण इस अजनाफ गढ़ का नाम भारत पड़ा था उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य चक्रवर्ती सम्राट थे बचपन में इन का नाम विक्रम सेन, विक्रम बेताल और सिहासन बत्तीसी की कहानियां विक्रमादित्य से ही जुड़ी है 

राजा विक्रमादित्य के पिताजी का नाम गंधर्व सेन था विक्रमादित्य आज से 2288 वर्ष पूर्व हुए थे नाबू वाहन के पुत्र गंधर्व चक्रवर्ती सम्राट थे राजा गंधर्व सेन का मंदिर मध्यप्रदेश में बना हुआ है यह मंदिर बहुत ही रहस्यमई है गंधर्व सेन के 2 पुत्र थे राजा विक्रमादित्य और भर्तृहरि थे विक्रमादित्य की माता जी का नाम सौम्या  दर्शना था जिन्हें वीरमति और मदन रेखा भी कहते थे इनकी एक बहन की जिन्हें मैंनावती कहते थे

राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा का हाल-चाल देखने के लिए साधारण वस्त्रों में  या वेश बदलकरअपने राज्य का भ्रमण करते थे राजा विक्रमादित्य अपने न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास करते थे 

राजा विक्रमादित्य का पूरा नाम

राजा विक्रमादित्य का नाम  विक्रम और आदित्य के समास से  बना है जिसका अर्थ -” पराक्रम का सूर्य” यानी कि सूर्य के समान पराक्रमी होना उन्हें विक्रम कहा जाता है

राजा विक्रमादित्य के गुरु का नाम

राजा विक्रमादित्य ने गुरु गोरक्षनाथ से अपनी शिक्षा ग्रहण की थी राजा विक्रमादित्य श्री गुरु गोरक्षनाथ जी से गुरु दीक्षा लेकर राजपाट संभालने लगे और आज उन्हीं के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है और हमारी संस्कृति बची हुई है 

विक्रमादित्य का विवाह

राजा विक्रमादित्य की 5 पत्नियां थी मलिया वती, मदन लेखा, पद्मिनी, चिल और चील महादेवी इनके दो पुत्र थे विक्रम  चृत और विनय पाल इनकी दो पुत्रियां थी  प्रेम मंजरी और वसुंधरा राजा विक्रमादित्य का एक भांजा था जिसका नाम था गोपीचंद प्रमुख मित्रों में एक     बट मात्र का नाम आता है राजा पुरोहित विक्रम और वसुमित्र थे| मंत्री भट्टी और वेयर सिंधु थे इनके सेनापति विक्रम शक्ति और चंद्र थे 

 विक्रम संवत की शुरुआत

राजा विक्रमादित्य को इतिहास में न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजाओं मे से एक माने गए हैं मालवा में इनके भाई भर्तृहरि का शासन था भरतु हरी के शासनकाल में शकुं का आक्रमण बढ़ गया था इसके बाद इनके भाई ने वैराग्य धारण कर राजपाट त्याग दिया

इसके बाद विक्रमादित्य ने ही शासन संभाला  विक्रमादित्य ने 78 के आसपास शकुं शासक को पराजित किया और क्रूर नाम के एक स्थान पर उस शासक की हत्या कर दी और शकुं को 57-58 के बीच अपने शासन क्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया इसी की याद में उन्होंने  विक्रम संवत की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया

विक्रमादित्य द्वारा सेना का गठन

राजा विक्रमादित्य ने अपनी भूमि को विदेशी राजाओं से मुक्त कराने के लिए एक सेना का गठन किया उनकी सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बन गई थी जिसने सभी दिशाओं में एक अभियान चलाकर विदेशी और अत्याचारी राजाओं से अपनी भूमि को मुक्त करा कर एकक्षेत्र शासन को कायम किया

विक्रमादित्य का व्यक्तित्व

कलर राज तरंगिणी के अनुसार 14 ईसवी केआसपास कश्मीर में अंतर युधिस्टर वंश के राजा हिरणयक के निसंतान मर जाने पर अराजकता फैल गई थी जिसको लेकर वहां के मंत्रियों की सलाह से उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मात्र गुप्त को कश्मीर का राज्य संभालने के लिए भेजा था नेपाली राज वंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशु बर्मन के समय उज्जैन के राजा विक्रमादित्य नेपाल आने का उल्लेख मिलता है

राजा विक्रम का भारत के संस्कृत ,प्राकृतिक ,अर्थ मांगती ,हिंदी ,गुजराती, मराठी ,आदि भाषाओं के ग्रंथों में विवरण मिलता है उनकी वीरता, उतारता ,दया ,क्षमा आदि गुणों की अनेक कथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी है सम्राट विक्रमादित्य का इतिहास

विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम

विक्रमादित्य ने नवरत्नों को रखने की शुरुआत की थी जिसे तुरक के राजा अकबर ने भी अपनाया था विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम धनवंतरी ,क्षपणक, अमर सिंह, कालिदास, शंकु, वराह मीर,और भररुचि इन रत्नों में सबसे श्रेष्ठ विद्वान ,कवि गणित, श्रेष्ठ कवि, विज्ञान के विशेषज्ञ सम्मिलित थे देश में ऐसे बहुत ही विद्वान थे जो कि विक्रम संवत को राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं

राजा विक्रमादित्य को विक्रम संवत का प्रवर्तक कहा जाता है इस संवत की पुष्टि ज्योतिष विद्या वर्ण से होती है जोकि 34 ईसा पूर्व लिखा गया था इसके अनुसार राजा विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व तक विक्रम संवत चलाया राजा विक्रमादित्य का अरब साहित्य में वर्णन मिलता है उस समय उनका शासन अरब तक फैला हुआ था पूरी धरती के लोग विक्रमादित्य को अच्छी प्रकार से जानते थे इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्य भारतीय महाद्वीप के अलावा ईरान, इराक और अरब में भी था 

विक्रमादित्य का स्वभाव

राजा विक्रमादित्य बहुत ही उदारवादी ,दयालु और कर्तव्यनिष्ठ थे वह हर एक व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचते थे उन्होंने अपने पवित्र धर्म को हमारे बीच फैलाया उन्होंने सूरज से भी तेज विद्वानों को इस देश में भेजा की शिक्षा का उजाला फैल सके इन विद्वानों ने भगवान की उपस्थिति और सत्य के मार्ग को बता कर हमारे ऊपर एक परोपकार किया यह विद्वान राजा विक्रमादित्य के निर्देश के अनुसार यहां शिक्षा देने के लिए आए थे 

विक्रमादित्य की मृत्यु

सम्राट विक्रमादित्य की मृत्यु के बारे में 31 वी पुतली कौशल्या ने बताया जब सम्राट विक्रमादित्य वृद्धावस्था में आ गए थे तो उन्होंने अपने योग बल से यह जान लिया था कि उनका अंतिम समय निकट है महाराज विक्रमादित्य राज कार्य तथा धर्म में खुद को लगाए रखते थे और उन्होंने वन में साधना के लिए कुटिया बनाई थी इसके बाद 15 ईसवी में इनकी मृत्यु हो गई थी

इसके बाद इनकी प्रजा  फूट-फूट कर रोने लगी जब उनकी चिता को सजाया गया तो उनकी चिता पर देवताओं ने फूलों की बारिश की थी राजा विक्रमादित्य के नाम की उपाधि कुल 14 भारतीय राजाओं को दी गई “विक्रमादित्य” की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की जिन में गुप्त सम्राट “चंद्रगुप्त द्वितीय “और सम्राट “हेमचंद्र” विक्रमादित्य उल्लेखनीय है सम्राट विक्रमादित्य का इतिहास

विक्रमादित्य की 32 पुतलियों के नाम

रतन मंजरी, चित्रलेखा, चंद्रकला, काम कांधला, लीलावती, रवि भामा, कौमुदी, पुष्पावती, मधुमालती, प्रभावती, त्रिलोचना, पद्मावती,  कीर्ति मती, सुनयना,सुंदरवती, सत्यवती, विद्यावती, तारावती, रूपरेखा, ज्ञानवती, चंद्र ज्योति, अनुरोध वती, धर्मवती, करुणावती, त्रिनेत्री, मृगनयनी, मलयवती ,वैदेही, मानवती, जय लक्ष्मी, कौशल्या, रानी रूपवती 

राजा विक्रमादित्य की गौरव गाथा

वृत कथाओं में इनकी काफी गौरव गाथा सम्मिलित है यह 10 वीं से 12 वीं सदी के बीच रचित ग्रंथ है इसमें प्रथम महान गाथा विक्रमादित्य और पृष्ठना के राजा के बीच की दुश्मनी की है इसमें राजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन की जगह पाटलिपुत्र दी गई है उनकी ने प्रियता और अन्य करने की बुद्धि स्वर्ग के राजा इंद्र ने उन्हें स्वर्ग बुलाया था

उन्होंने अपनी एक न्याय प्रणाली में राजा विक्रमादित्य से राय ली थी उन्होंने राजा विक्रमादित्य को 32 बोलने वाली मूर्तियां भेंट की यह मूर्तियां अभिशप्त थी और इनका साथ किसी चक्रवर्ती राजा के न्याय से ही कट सकता था सम्राट विक्रमादित्य का इतिहास

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