History

पाषाण काल का इतिहास 

पाषाण काल का इतिहास, मध्य पाषाण युग, नवपाषाण युग, पाषाण युग का आरंभ , मानव सभ्यता का विकास , मानव सभ्यता के अवशेष 

पाषाण काल का इतिहास 

पाषाण युग इतिहास का एक ऐसा समय था जो कि मानव संस्कृति पूरी तरह से पत्थरों पर आधारित थी वह पत्थरों से ही शिकार करता था और पत्थरों की गुफा में रहता था और पत्थर से उसने आग जलाना सीखा था को तीन भागों में बांटा गया है- पूरा पाषाण युग,मध्य पाषाणकाल, नवपाषाण युग

जो कि मानव काल के 25लाख पूर्व से लेकर कांस्य युग तक फैला हुआ था पुरापाषाण युग इतिहास में 25 लाख पूर्व से लेकर 12000 वर्ष तक चला था भारत में मानव सभ्यता लगभग 5 लाख साल पहले सामने आई थी भारत में पुरापाषाण युग के नर्मदा घाटी में काफी अवशेष मिले हैं मध्यप्रदेश में भीमबेटका स्थान पर काफी गुफाएं पाई गई है | पाषाण काल का इतिहास  |

 मध्य पाषाण युग-

मध्य पाषाण युग में काफी आविष्कार हुआ था आग जलाने का आविष्कार भी मध्य पाषाण युग में हुआ था इसके अलावा मध्य पाषाण युग में बस्तियां बनाने का भी आविष्कार हुआ था इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई थी 

नवपाषाण युग –

नवपाषाण युग में हाथों से बने हुए औजार प्रयोग किए जाते थे कृषि करना, मिट्टी के बर्तन बनाना जैसे काफी आविष्कार नवपाषाण युग में हुए थे नवपाषाण युग में मानव ने खेती के लिए बीज तैयार करना सीख लिया था और साथ ही सिंचाई करना भी सीख लिया था 

पाषाण युग का आरंभ 

पाषाण युग का आरंभ आज से 6लाख वर्ष पूर्व माना जाता है इस युग से संबंधित विभिन्न देशों से प्राप्त सामग्रियों का अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष निकला है कि उन सभी देशों के प्रारंभिक इतिहास का स्वरूप एक सा था जहां पर भारतीय इतिहास के पूर्व स्तर युग के समान ही सामग्रियां मिली है यूरोप, एशिया, अफ्रीका आदि देशों में पत्थर के बने औजार मिले हैं जिनका उपयोग पुरातन प्रस्तर कालीन निवासी करते थे

इंग्लैंड के दक्षिणी और फ्रांस के उत्तर पश्चिमी भागों से प्राप्त किए गए प्राचीन औजारों में और भारतीय अफ्रीका में प्राप्त किए गए औजारों में बहुत सी समानताएं मिली है पूर्व पाषाण कालीन मानव और उसकी सभ्यता पृथ्वी के सभी प्रदेशों में एक समान थी और उस सभ्यता का क्रमिक विकास भी सभी कोनों में समान ढंग से हुआ है

इस युग के आरंभ और अंत के संबंध में अनुमान है कि आज से करीब 6लाख वर्ष पूर्व पुरातन पाषाण युग का आरंभ हुआ और तब से लेकर आज से लगभग 10हजार वर्ष पूर्व तक पासवान युगन सभ्यता के अवशेष मौजूद रहे हैं 

मानव सभ्यता का विकास 

पुरापाषाण काल का मनुष्य बर्बर था उसका जीवन प्राय पशुओं का था उन्हीं के साथ उसको अपना जीवन बिताना पड़ता था हिंसक पशुओं के वजह से उसका जीवन सदा संकट में रहता था वह खुद भी हिंसाक था अपनी रक्षा और जीविका दोनों के लिए उसे हथियारों और औजारों की आवश्यकता थी उस समय का मनुष्य पत्थरों पर आश्रित था व

ह पत्थरों को तोड़फोड़ कर अपने लिए औजार बनाते थे और फिर उनसे जानवरों का शिकार करते थे वह पत्थरों से फरसा, बाण भाला, खंती, आरी ,चाकू ,हथोड़ा और रगड़ पट्टी आदि औजार बनाते थे आदिम पाषाण काल के औजारों में मानव हाथ और बुद्धि का अधिक उपयोग हुआ है साथ ही साथ में जानवरों की हड्डियों और पेड़ की टहनियों का भी उपयोग करते थे

इस युग के मनुष्य के सभी हथियार औजार भद्दे और सौंदर्य से रहित थे इस काल के मनुष्य को अपना घर बनाना नहीं आता था इसलिए धूप, वर्षा और शीत से बचने के लिए वह सगन वृक्षों के अतिरिक्त पर्वत को कंदराओ और नदियों या जिलों के छोड़े हुए कगारो की शरण लेता था राजस्थान में तत्कालीन जीवन के बहुत से अवशेष मिले हैं उसके जीविका के मुख्य साधन फल मूल संग्रह और आखेट थे इन स्थानों से निकलकर मनुष्य अपना निर्वाह जंगल में फल इकट्ठे करके तथा जानवरों का शिकार करके करता था

हिरण, भैंस, सूअर और दूसरे छोटे जानवरों का आविष्कार करता था उस समय मानव ने अग्नि का आविष्कार तो कर लिया था परंतु उसे अग्नि का उपयोग करना नहीं आता था इसलिए वह पशुओं की तरह कच्चा भोजन ही करता था किंतु भोजन पकाने में अब भी उसका उपयोग नहीं करता था इसके बाद मनुष्य ने अस्त्रों को फेंक कर शिकार करने से एक कदम आगे बढ़कर धनुष और बाण का ज्ञान प्राप्त किया और फिर शिकार में और भी तेज और सफल औजारों का प्रयोग उसने करना शुरू कर दिया

इसके बाद उसने वृक्षों की शाखाओं  और गुफाओं से हटकर अपने लिए तंबू बनाने का प्रयास किया और इसमें उसे सफलता भी प्राप्त हुई इसके बाद मनुष्य ने चमड़े की खाल से और उसी के धागे का उपयोग करके सींग, हड्डी अथवा हाथी दांत की बनी हुई सुईयो से उसने तंबू अथवा अपने पहनने और ओढ़ने के लिए खोल बनाना सीख लिया था तत्कालीन मानव पूर्णता आत्मनिर्भर था और अपने आवश्यकताओं की वस्तुओं की व्यवस्था व खुद करता था 

मानव सभ्यता के अवशेष 

पश्चिमी मध्य प्रांत से खुदाई में उपलब्ध इस युग से संबंधित अन्य वस्तुओं के साथ-साथ शंख और कौड़िया भी मिली है जिनका समुंदर तट पर ही पाया जाना संभव था इस युग के अवशेषों के साथ में कुछ ऐसी भी संगरिया मिली है जो किसी अन्य स्थान से ही लाई गई जान पड़ती है उस युग का मानव भी आदान-प्रदान की पद्धति से परिचित था और वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति में इस साधन का भी प्रयोग करता था और व्यापार द्वारा भी बाहर की किन्हीं वस्तुओं की प्राप्ति कर लेता था

तत्कालीन युग के मनुष्यों के झुंड में एक प्रकार का संगठन अवश्य रहा होगा टोली की अवस्था और उसका संचालन निश्चय ही टोली का सबसे बलवान व्यक्ति करता होगा, जिसका शासन टोली के अन्य सदस्य मानते रहे होंगे यह टोलियां शिकार आदि की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण किया करती थी और जंगली घातक पशुओं से अपनी रक्षा भी सामूहिक ढंग से करती थी

इसी काल में उसमें लज्जा का भाव भी उत्पन्न हुआ गुप्त अंगो को उसने ढकना शुरू किया उस समय का मनुष्य अपना शरीर ढकने के लिए पेड़ों के पत्तों और छाल का इस्तेमाल करता था छाल को वह कमर में लपेटता और पत्तों की माला बनाकर कटी प्रदेश के नीचे लटका देता था पशुओं का चमड़ा भी पर्दे का काम देने लगा अति भौतिक सत्ता का चाहे कुछ आभास मनुष्य को हो चुका हो, किंतु धार्मिक भावनाओं का स्पष्ट उदय अभी तक नहीं हुआ था

किंतु फिर भी मृत्यु के संबंध में एक बात विशेष उल्लेखनीय है कि मानव में एक विचार कुछ गहराई तक स्थान प्राप्त कर चुका था और वह यह था कि मनुष्य के व्यवहारिक जीवन का अंत मृत्यु के साथ ही नहीं हो जाता, बल्कि उसके पश्चात भी उसे उन सभी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है उस युग के मनुष्यों कि इसी धार्मिक विचारधारा का परिणाम था कि धरती में गाड़े गए शवो के साथ ही वह औजार, आभूषण,मास आदि भी

अनेक जीवन की उपलब्ध उपयोगी वस्तुओं को भी रख दिया करता था जिनके अवशेष और हड्डियों के रूप में आज भी गुफाओं में शवो अस्थि पंजर के साथ मिलते हैं इन बातों से पता चलता है कि भौतिक जीवन से संबंधित उनकी अपनी धारणाएं थी तत्कालीन मानव के इस प्रकार की धार्मिक भावनाओं का समर्थन भारत में प्राप्त किए गए अवशेषों से नहीं बल्कि यूरोप अथवा पश्चिमी एशिया आदि में प्राप्त अवशेषों और गुफाओं से प्राप्त किए गए हड्डियों, आभूषण, औजारों आदि से हो पाता है वह अपने मृतकों को खुले मैदान में छोड़ देते थे जिनको जंगली जानवर खा जाते थे 

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