History

राजा बख्तावर सिंह का इतिहास

राजा बख्तावर सिंह का इतिहास, राजा बख्तावर का जन्म , महाराणा बख्तावर सिंह की मृत्यु

राजा बख्तावर सिंह का इतिहास

 महाराणा बख्तावर सिंह मध्य प्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे के शासक थे जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मध्यप्रदेश में अंग्रेजों से संघर्ष किया था लंबे संघर्ष के बाद सालपुरा का अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया था वह ना केवल वीर थे बल्कि वीरों का आदर भी करते थे उनके पूर्वज मूल रूप से जोधपुर के राठौड़ वंश के राजा थे

मुगल सम्राट जहांगीर ने प्रसन्न होकर उनके वंशजों को अमझेरा का शासक बनाया था महाराणा बख्तावर को शिक्षा दीक्षा एवं अस्त्रों के संचालन का अच्छा प्रशिक्षण दिया गया था 1856 में राजा बख्तावर सिंह ने अंग्रेजों से खुला युद्ध किया पर उनके आसपास के कुछ राजा अंग्रेजों से मिलकर चलने में ही अपनी भलाई समझते थे राजा ने इन से नाराज ना होते हुए 3 जुलाई 1857 को भोपावर छावनी पर हमला कर उसे कब्जे में ले लिया था | राजा बख्तावर सिंह का इतिहास |

राजा बख्तावर का जन्म 

राजा बख्तावर सिंह का जन्म 14 दिसंबर 1824 को हुआ था इनके पिता जी का नाम “अजीत सिंह राठौड़” था और इनकी माता जी का नाम ‘इंदु कुंवर’ था 1857 की क्रांति में राजा बख्तावर सिंह ने अपना अहम योगदान दिया था अमझेरा बहुत बड़ा राज्य था जिसमें ‘भोपावर’ और दत्ती गांव भी सम्मिलित थे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की आग भड़कने ही वाली थी कि विद्रोह का पहला विस्फोट 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने कर दिया

विद्रोह की आग मेरठ दिल्ली के साथ-साथ सारे देश में फैल गई महाराणा बख्तावर सिंह और इंदौर के महाराजा “तुकोजी राव होल्कर” में अच्छी मित्रता थी अंग्रेजों को इनकी गतिविधियों पर संदेह हुआ उन्होंने इन दोनों पर निगरानी रखने हेतु अपनी फौजी छावनी स्थापित की इंदौर में HM टूर एंड तथा भोपावर में कैप्टन एक्शन को पोलिटिकल एजेंट बनाकर भेजा बैरकपुर की घटना के तुरंत बाद महाराजा तुकोजी राव ने रेजीडेंसी पर तथा महाराणा बख्तावर सिंह ने भोपावर पर आक्रमण बोल दिया

इसके बाद सांदला के श्री ‘भवानी सिंह’ तथा दीवान गुलाबराव के नेतृत्व में एक सशस्त्र सेना ने रात में भोपावर पर आक्रमण किया अंग्रेजी सेना में मालवा के भील थे जिन्होंने महाराणा बख्तावर सिंह की क्रांतिकारी सेना का साथ दिया पोलिटिकल एजेंट कैप्टन को अपने बचे हुए सैनिकों सहित झाबुआ की ओर भागना पड़ा इसके बाद अमझेरा के एक नागरिक मोहनलाल ने अंग्रेजी झंडा उतार कर अपनी रियासत का झंडा लगा दिया महाराणा बख्तावर ने अमझेरा राज्य को कंपनी के शासन से मुक्त किया और स्वतंत्र घोषित कर दिया | राजा बख्तावर सिंह का इतिहास |

विद्रोह की ज्वाला 

राजा तुकोजीराव होलकर के हमले के कारण लेफ्टिनेंट घबरा गया और भागकर होशंगाबाद की छावनी में पहुंच गया अंग्रेजों ने होशंगाबाद छावनी में योजना तैयार कर 24 जुलाई 1857 को भारी सेना के साथ कैप्टन को भोपावर भेजा उसने क्रांतिकारी सेना के दीवान गुलाबराव कामदार भवानी सिंह को कैद कर लिया था और भोपावर में फिर से अपनी एजेंसी स्थापित कर ली थी 10 अक्टूबर1857ईस्वी को महाराणा बख्तावर सिंह ने पेशावर पर हमला बोला और भोपावर पर कब्जा कर लिया

सरदारपुर में अंग्रेजों की काफी बड़ी सेना थी महाराणा की क्रांतिकारी सेना ने सरदारपुर पर आक्रमण बोला किंतु अंग्रेजों के तोपों के सामने टिक पाना संभव नहीं था इसके बाद महाराणा ने युद्ध कौशल का कमाल दिखाया और अपनी सेना की एक टुकड़ी को नदी की ओर से अंग्रेज सेना पर धावा बोलने को भेज दिया इस युद्ध में राजगढ़, धार के नागरिकों ने महाराणा की क्रांतिकारी सेना की मदद की थी इस युद्ध में महाराणा बख्तावर सिंह की जीत और क्रांतिकारी सेना को विजय मिली क्रांतिकारी सेना और महाराणा बख्तावर सिंह का धार के नरेश “भीमराव भोसले” ने जोरदार स्वागत किया

इसके बाद महाराणा बख्तावर सिंह, राजा तुकोजी राव और नरेश भीम राव भोसले की क्रांतिकारी सेनाओं ने मानपुर और मंडलेश्वर में अंग्रेजों की छावनीयो पर आक्रमण कर उन्हें तबाह कर डाला था इसके बाद लेफ्टिनेंट कैप्टन ने चालाकी से काम लिया और महाराणा बख्तावर सिंह के पास संधि का प्रस्ताव भेजा और अमझेरा को स्वतंत्र राज्य मान लेने का आग्रह किया  महाराणा बख्तावर सिंह संधिवार्ता के लिए “महू” जा पहुंचे जहां “डूरेन” ने  उनका जोरदार स्वागत किया और उनके सम्मान में कार्यक्रम भी रखा था | राजा बख्तावर सिंह का इतिहास |

महाराणा बख्तावर सिंह की मृत्यु

 एक दिन महाराणा बख्तावर सिंह और उनके साथी नदी में स्नान कर रहे थे कि अंग्रेजी सेना ने धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया अंग्रेज सरकार ने न्याय का पूरा नाटक खेला था अंततः 21 दिसंबर1857ईस्वी को महाराणा बख्तावर सिंह उनके दीवान गुलाब राव और बशीर फांसी की सजा सुना दी 10 फरवरी1858ईस्वी को फांसी का दिन तय कर दिया गया महाराणा बख्तावर सिंह तथा उनके साथियों को इंदौर के सियागंज स्थित छावनी में अस्थाई कैद खाना बनाकर रखा गया और पूरी छावनी सीमा पर फौजी गस्त कायम कर दी गई कोई भी नागरिक और झांककर ना देख सके

न्यायाधीश ने फांसी देने के निर्णय में एक साथ ना देकर एक एक करके देने का आदेश दिया जिस पर विवाद उत्पन्न हो गया महाराणा के साथियों की मांग थी कि वे महाराणा को फंदे पर लटकता देखना नहीं चाहते उन्होंने न्यायधीश से निवेदन किया कि महाराणा बख्तावर से पहले उन लोगों को फांसी पर चढ़ाया जाए महाराणा बख्तावर का राजा होने के नाते फांसी का हक पहले उनका है शासन ने तय किया कि महाराणा बख्तावर सिंह को अंत में फांसी दी जाए जिससे कि वहअपने साथियों को मरते हुए देखकर उस वेदना का भी दर्द देखें 10 फरवरी 1858 को पहले महाराणा के साथियों को फांसी पर लटकाया गया और अंत में महाराणा बख्तावर को फांसी पर लटका दिया गया प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद क्रांतिकारियों ने भारत माता की जय जय कार के नारों से आसमान को गुंजा कर और मातृभूमि लिए अपने प्राण निछावर कर के अमर इतिहास लिख दिया  | राजा बख्तावर सिंह का इतिहास |

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