टीपू सुल्तान का जीवन परिचय और इतिहास
टीपू सुल्तान का जन्म
टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर 1750 देवनहल्ली में हुआ था टीपू का पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था इनके पिता जी का नाम हैदर अली था इनकी माता जी का नाम फकरुइंसा था हैदर अली के सबसे बड़े पुत्र होने के नाते टीपू सुल्तान ने अपने पिता के बाद 1761 में मैसूर राज सिहासन को संभाला था वह भारत में मैसूर के स्वतंत्र राज्य के शासक थे टीपू सुल्तान बचपन में बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे और वह सभी कलाओ में निपुण थे
उन्होंने कई लड़ाईयो में अपने पिता की सहायता की थी टीपू को किताबों से बहुत अधिक लगाव था और उनके पुस्तकालय में लगभग 2000 किताबें थी जब टीपू सुल्तान की आयु 32 वर्ष की थी तब उनके पिता हैदर अली की मृत्यु हो गई थी राज सिहासन पर बैठने के बाद टीपू सुल्तान ने जनता की भलाई के लिए बहुत अच्छे कार्य किए वह अपने राज्य के विकास के लिए प्रतिबद्ध थे | टीपू सुल्तान का जीवन परिचय और इतिहास |
अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष
टीपू ने मैसूर का सुल्तान बनने पर अपनी शक्ति को बढ़ाना शुरू किया और उसने तुर्की और फ्रांस जैसे देशों से समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया जब टीपू सुल्तान राज गद्दी पर बैठे तो उस समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था और टीपू के पिता के साथ अंग्रेजों के मतभेद थे इन्हीं मतभेदों के कारण अंग्रेजो के खिलाफ उन्होंने कई संघर्ष किए थे
टीपू सुल्तान कोअंग्रेजों के साथ भावी युद्ध की असीम संभावना लग रही थी इसी कारण उसने 1784 में तुर्की में अपना एक दूत भेजा अपने पद को मान्यता दिलाने के लिए और साथ ही युद्ध में सहायता के लिए इसके बाद 1787 में फ्रांस में अपना एक दूत भेजा 1785 से 1787 तक टीपू सुल्तान का मराठों के साथ संघर्ष हुआ जिसमें टीपू ने मराठों के कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था इसके बाद टीपू सुल्तान और मराठों के बीच में संधि हो जाती है| टीपू सुल्तान का जीवन परिचय और इतिहास |
तृतीय मैसूर युद्ध
उस समय ब्रिटिश का गवर्नर लॉर्ड कॉर्नवालिस था उसने टीपू सुल्तान पर आरोप लगाया कि वह अंग्रेजों के विरुद्ध फ्रांसीसीयो का साथ दे रहा है अंग्रेजों ने टीपू के खिलाफ भी कई संघर्ष किए परंतु वह बड़े ही पराक्रम से अंग्रेजों का सामना करते थे और अंग्रेज टीपू सुल्तान के खिलाफ सफल नहीं हो पा रहे थे |
अंग्रेजों के त्रावणकोर पर टीपू सुल्तान ने आक्रमण कर दिया था युद्ध शुरू करने से पहले 1790 में अंग्रेजों ने मराठों वह निजाम के साथ मैत्री संधि कर ली थी जिसे त्रिगुट संधि कहा गया है इसके बाद टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों को बुरी तरह से हरा दिया था इसके बाद कार्नवालिस ने टीपू सुल्तान के विरुद्ध युद्ध का खुद ने युद्ध का नेतृत्व किया |
टीपू सुल्तान द्वारा पहला युद्ध
टीपू सुल्तान ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजो के खिलाफ पहला युद्ध जीता था उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता हैदर अली ने ही उन्हें शेर-ए-मैसूर के खिताब से नवाजा था अपनी सफलताओं के कारण अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के खिलाफ षड्यंत्र का सहारा लिया अंग्रेजों ने कई प्रकार के षड्यंत्र रच कर टीपू सुल्तान के विश्वास पात्रों को अपनी ओर मिला लिया था | टीपू सुल्तान का जीवन परिचय और इतिहास |
टीपू सुल्तान द्वारा बनाई गई रॉकेट
टीपू सुल्तान पहले योद्धा थे जिन्होंने अपने द्वारा बनाई गई रॉकेट से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे आज से 300 साल पूर्व टीपू सुल्तान ने एक ऐसे हथियार का निर्माण किया था जिसने दुश्मनों के पसीने छुड़ा दिए थे जब अंग्रेजों और टीपू सुल्तान के बीच में युद्ध हुआ तो अंग्रेजों के तोप और बारूद टीपू सुल्तान की सेना पर भारी पड़ने लगे तब टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को एक ऐसा हथियार दिया जिसका सामना ब्रिटिश फोज ने पहले कभी नहीं किया था
इस हथियार का नाम जिसे इतिहास में मसूरियन रॉकेट के नाम से जाना जाता है टीपू सुल्तान के पिता अली हैदर सिपाही के बेटे अली हैदर के पिता आर्मी के सिगनलिंग डिवीजन के प्रमुख थे उस समय छोटे रॉकेट का इस्तेमाल सिग्नल देने के लिए किया जाता था इसके बाद टीपू सुल्तान अपने पिता हैदर अली द्वारा बनाए गए इन छोटे रॉकेटो को जोड़कर एक ऐसा खतरनाक हथियार का रूप दे दिया था | टीपू सुल्तान का जीवन परिचय और इतिहास |
रॉकेट का वजन
रॉकेट में 4 फुट लंबी तलवार को जोड़कर इस रॉकेट को उड़ाने का सिद्धांत बड़ा ही आसान था जब इसमें आग लगाई जाती तो इसमें भरा बारूद जलने की वजह से इस रॉकेट को ऑपोजिट दिशा में गति मिलती है जिसकी वजह से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी तय करता है
इस रॉकेट में जो तलवार लगाई जाती थी इसका वजन रॉकेट से ज्यादा होता था इसलिए रॉकेट में मौजूद बारूद खत्म होने पर तलवार हवा में चक्कर खाते हुए ब्रिटिश सेना पर गिरती थी और बहुत नुकसान पहुंचाती थी इसके बाद 1767- 1799 ईसवी तक अंग्रेजों के साथ हुए युद्ध में इस विनाशक हथियार ने बहुत अधिक कहर मचाया था इस हथियार का सफल इस्तेमाल 1780 ईसवी में हुए दूसरे युद्ध में हुआ था |
टीपू सुल्तान द्वारा बोला गया मुहावरा
शेर की एक दिन की जिंदगी, गीदड़ की सो साल की जिंदगी से बेहतर है यह बात सबसे पहले शेर ए मैसूर सुल्तान टीपू सुल्तान ने बोली थी टीपू सुल्तान जब तक जिंदा रहा तब तक अंग्रेजों और भारत के बीच पत्थर की दीवार बनकर खड़ा रहा था टीपू सुल्तान एक बलशाली योद्धा थे | टीपू सुल्तान का जीवन परिचय और इतिहास |
पालकाड का किला
पालकाड का किला , “ टीपू का किला ” नाम से प्रसिद्ध है यह किला टाउन के मध्य भाग में स्थित है इसका निर्माण 1766 में किया गया था यह किला भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत सुरक्षित स्मारक है टीपू सुल्तान खुद को नागरिक टीपू कहा करता था |
चौथा कर्नाटक का युद्ध
यह युद्ध 1799 में हुआ था उस समय में बंगाल का गवर्नर लॉर्ड वेलेजली आया था टीपू सुल्तान अंग्रेजों से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो गया था इसके बाद में वाडयार वंश के एक बालक को मैसूर की गद्दी पर बिठाया गया और देश पर सहायक संधि थोप दी गई थी
टीपू सुल्तान की मृत्यु
टीपू सुल्तान को हराने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने फ्रांसीसी लोगों, अफगानी एवं तुर्की अमीरों, मराठा और हैदराबाद के निजाम को अपनी ओर मिला लिया अंग्रेजों ने मराठों का निजाम की सहायता से श्रीरंगपट्टनम को घेर लिया था टीपू सुल्तान युद्ध को जारी रखने में समर्थ नहीं थे अत: उसने संधि करना स्वीकार किया
1792 ईस्वी में श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई थी इसके बाद इस कारणवश टीपू सुल्तान की हार हो गई अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए 4 मई 1799 को टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद धीरे धीरे भारत पर अंग्रेजों का कब्जा होने लगा थाऔर एक दिन वह भी आया था जब पूरे भारत पर अंग्रेजों का राज था टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है
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